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CPCT Hindi Typing Test Shift - 1) 25 Nov. 2017 (Passing Score- 20 wpm, Duration- 15 Minute)

created Jun 29th 2019, 13:28 by Dilip Shah


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आपदा ना केवल हमारे जन-जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करता है बल्कि हर साल हजारों जिंदि‍गियों को अपना शिकार बनाता है और करोड़ों की सम्‍पत्ति का नुकसान भी करता है। आकड़ों की बात करें तो पिछले तीन दशक में भारत में चार अरब से भी ज्‍यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, और हर साल लगभग 1200 लोग बाढ़ में अपनी जिंदगी गवा देते हैं। हम अक्‍सर देखते हैं कि बरसात का मौसम आते ही नदियां उभरने लगती है और हमारे देश के अधिकांश क्षेत्रों में बाढ़ तबाही फैलाना शुरू कर देती है। हमारी हर सम्‍यता का विकास नदियों के पास से ही शुरू हुआ है और जब-जब अपना विकराल रूप धारण करती है तो नदियों के किनारे बसा जन-जीवन बुुुुरी तरह से प्रभावित हो जाता है, और उस इलाके के हरे-भरे खातों को भी वो अपने जपेट में ले लेता है। भले ही बीते दशकों के मुकाबले पिछले कुछ सालों में बारिश में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद बाढ़ से होने वाली तबाही लगातार बढ़ती जा रही है। भारत सरकार के गृह मत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत के 23 राज्‍य बाढ़ कि दृष्टि से अति संवेदनशील इलाके में आते हैं, वही भौगोलिक दृष्टिकोण से देश का 1/8वां हिस्‍सा यानी लगभग 40 लाख हेक्‍टेयर भाग बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील है, जिसमें से लगभग 8 लाख हेक्‍टेयर जमीन हर साल बाढ़ से प्रभावित होती है। हमारे देश में बाढ़ की समस्‍या मुख्‍य रूप से गंगा के उत्‍तरी किनारे वाले राज्‍यों में है, जहां गंगा के अलावा यमुना, कोसी, सोन, घघरा और कई प्रमुख नदियां बहती हैंं जो कि उत्‍तराखण्‍ड, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्‍थान, बिहार और दक्षिण बंगाल के कुछ हिस्‍सों में फैली हुई है जिसके किनारे घनी आबादी वाले शहर है। इन शहरों की आबादी 40 करोड़ से भी ज्‍यादा है जिसका परिणाम है कि नदियों के ढलाव क्षेत्र पर दबाव बढ़ता जा रहा है, भूमि साद के रूप में नदी की धारा में ही जमने लग रही है जो कि मैदानी इलाकों में नदियों की गहराई  को उथला बना दे रही है और इसके फलस्‍वरूप बरसात का पानी नदी की धारा में मिलने के बजाए आस-पास के इलाकों में बाढ़  के रूप में फैलना शुरू कर देता है। इसमें कोई दो राय नहीं हो कि विकास के नाम पर भूमि को बांधकर रखने वाले जंगल बेतहाशा काटे गए, जहां अब इमारतों ने जगह ले ली है, कई जगह कारखाने और सड़कों के जाल ने प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके नतीजतन अब इन ढलानों पर बरसने वाला पानी संरक्षित हो कर नदी में मिलने के बजाए क्षेत्र की भूमि को मिनटों में बहा कर ले जाते हैं, वहां मौजूद जन-जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।  

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