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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open {संचालक-बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}
created Jul 11th 2019, 11:26 by subodh khare
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किसी देश की आंतरिक स्थिति के बारे में संयुक्त राष्ट्र की ओर से जब आधिकारिक रूप से कोई राय जाहिर की जाती है तो उससे निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित होने की अपेक्षा स्वाभाविक है। ज्यादातर मामलों में ऐसा होता भी है। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि किसी खास मसले पर एक तरह से निष्कर्ष देने के क्रम में कुछ जरूरी पहलुओं पर गौर करना जरूरी नहीं समझा जाता। पिछले कई सालों से जम्मू-कश्मीर में जो हालात चल रहे हैं, उन्हें किसी एक बिंदु पर खड़े होकर देखने से तस्वीर का एक पहलू ही नजर आएगा और मुमकिन है कि उसकी वजहों पर नजर नहीं जा सके। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की ओर से जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर जारी ताजा रिपोर्ट में जो बातें कही गई हैं, उन्हें इसी कसौटी पर रख कर देखा जा सकता है। इसमें भारत-प्रशासिक कश्मीर में मानवाधिकार के उल्लंघनों को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल डेढ़ सौ से ज्यादा आम शहरियों की मौत पिछले एक दशक के दौरान सबसे बड़ा आंकड़ा है।
गौरतलब है कि पिछले साल भी संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर की स्थिति पर पेश अपनी रिपोर्ट में लगभग इसी तरह के आकलन पेश किए थे। निश्चित रूप से कहीं भी मानवाधिकारों के हनन को लेकर जताई जाने वाली चिंता पर विचार किया जाना चाहिए। लेकिन अगर उस चिंता में हालात की मूल वजहों की अनदेखी की जाती है तो उस पर सवाल उठना लाजिमी है। यह बेवजह नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट पर भारत ने सख्त एतराज जताया है। रिपोर्ट को खारिज करते हुए भारत ने इसे मनगढ़ंत और दुर्भावना से प्रेरित बताया है। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र जब कश्मीर में आतंवाद की वजह से उत्पन्न हालात को संभालने के लिए भारत की कोशिशों पर सवाल उठाता है तो क्या उससे यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह सीमा-पार की उन गतिविधियों पर भी गौर करे जिनमें लगातार आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है। यह अब कोई छिपा तथ्य नहीं है कि कई आतंकवादी संगठन पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे हैं और कश्मीर में लगातार आतंक का माहौल बनाए रखते हैं। तब एक संप्रभु देश के रूप में क्या भारत को उन आतंकियों से निपटने का अधिकार नहीं है। क्या भारत की ओर से आतंक का सामना करने को कठघरे में खड़ा कर संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद को वैधता प्रदान करने की कोशिश करना चाहता है।
गौरतलब है कि पिछले साल भी संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर की स्थिति पर पेश अपनी रिपोर्ट में लगभग इसी तरह के आकलन पेश किए थे। निश्चित रूप से कहीं भी मानवाधिकारों के हनन को लेकर जताई जाने वाली चिंता पर विचार किया जाना चाहिए। लेकिन अगर उस चिंता में हालात की मूल वजहों की अनदेखी की जाती है तो उस पर सवाल उठना लाजिमी है। यह बेवजह नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट पर भारत ने सख्त एतराज जताया है। रिपोर्ट को खारिज करते हुए भारत ने इसे मनगढ़ंत और दुर्भावना से प्रेरित बताया है। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र जब कश्मीर में आतंवाद की वजह से उत्पन्न हालात को संभालने के लिए भारत की कोशिशों पर सवाल उठाता है तो क्या उससे यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह सीमा-पार की उन गतिविधियों पर भी गौर करे जिनमें लगातार आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है। यह अब कोई छिपा तथ्य नहीं है कि कई आतंकवादी संगठन पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे हैं और कश्मीर में लगातार आतंक का माहौल बनाए रखते हैं। तब एक संप्रभु देश के रूप में क्या भारत को उन आतंकियों से निपटने का अधिकार नहीं है। क्या भारत की ओर से आतंक का सामना करने को कठघरे में खड़ा कर संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद को वैधता प्रदान करने की कोशिश करना चाहता है।
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