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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Aug 19th 2019, 09:42 by GuruKhare


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हमारे देश और समाज में पिछड़ा बैकवर्ड कहा जाना उपनिवेशकालीन देन है। इससे हम आज अपना चेहरा बनाने के लिए आंदोलन पर उतर आते हैं। यह भूल जाते हैं कि इसका वास्‍तविक अभिप्राय क्‍या है। यह कथन उन भू-स्‍वामी, आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रभुत्‍व रखने वाली जातियों के लिए खरा उतरता है, जो अपने को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों में गिने जाने हेतु संघर्ष कर रही हैं। इनमें महाराष्‍ट्र के मराठा, हरियाणा के जाट, गुजरात के पाटीदार और आंध्रप्रदेश के कापू आदि आते हैं।
    उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों और नौकरियों में आरक्षण की मांग करने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह है कि ये जातियां कृषि संकट की चपेट में हैं, और अपने युवाओं के भविष्‍य को अच्‍छी नौकरियों या आय के अन्‍य स्रोतों से सुरक्षित करना चाहती हैं।
    यह एक भ्रामक सत्‍य है कि कोटा से अच्‍छी नौकरियां प्राप्‍त की जा सकती हैं। यह सत्‍य भी है, तो समाज में हर किसी को एक प्रतिष्ठित नौकरी की आवश्‍यकता है। अत: कोटा की मांग रखने वालों को कुछ पैमानों पर जांचा जाना जरूरी है। इस हेतु कुछ आधारों पर मराठाओं, जाटों और पाटीदारों की ब्राह्मणों, गैर-ब्राह्मण अग्रजातियों, अन्‍य पिछड़ी जातियों और अनुसूचति जाति-जनजाति से तुलना करते हुए एक सर्वेक्षण किया गया, जिसके नतीजे परस्‍पर विरोधी दिखाई देते हैं।
    बढ़ते निजीकरण के चलते नौकरियां सीमित हो गई हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि अन्‍य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजाति अभी भी उच्‍च जातियों से काफी पिछड़ी हुई हैं। ऐसे में अपेक्षाकृत धनी और शक्तिशाली वर्गों को आरक्षण दिए जाने से वंचित और पिछड़े वर्गों के अधिकार मारे जाएंगे।
     

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