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चम्मचभर पानी में डूब मरने के दिन
created Aug 23rd 2019, 10:12 by soni51253
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पानी रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन होता है। पानी अपनी तरलता के कारण कहीं भी घुस जाता हैं। जिंदगी को एडजस्टमेंट करके जीना पानी की पॉलिसी है। पानी निर्मल है, इसलिए वह धर्मविहीन,जातिविहीन, पंथविहीन, गोत्र और कुलविहीन है। पानी के कई रूप हैं। पानी यदि हठ पर आ जाए तो आगे वाले को पानी-पानी करके ही दम लेता है. सरलता और सहजता पानी का गुण हैं, जो इसके गुण की कद्र नहीं करता , पानी उसको नानी याद दिला देता है। इन दिनों पूरे भारतवर्ष में पानी की किल्लत के कारण लोगों का कमोबेश यही हाल हो रखा है. पानी की इतनी कमी हो गई है कि चुल्लू भर पानी में डूबकर मरने वाले सूरमाओं को चम्मच भर पानी में ड़ूबकर मोक्ष प्राप्त करना पड़ रहा है। मरने के बाद भी अंतिम समय में उनके शव को पानी की जगह कोल्ड ड्रिंक पिलाई जा रही है। घर आए मेहमानों को पानी पूछने से पहले ही सीधे रूह अफजा शरबत के गिलास पकड़ाया जा रहा है। दो-दो बाल्टियों में नहाने वाले अब स्प्रे व परफ्यूम से अपने को तरो-ताजा रखने का प्रयास कर रहे हैं। पानी की बूंद-बूंद के लिए हाहाकार है, जैसे पानी-पानी न होकर सोना-चांदी बन गया है। पानी की कालाबाजारी करने वाले काले कारोबारियों ने पानी को ब्याज पर देना शुरू कर दिया है। पानी चोरी की घटनाएं यकायक बढ़ गई है। अब लोग पानी को तिजोरियों में रखकर ताला लगा रहे है। दहेज में भी पैसों की जगह पानी की पेशकश की जा रही है। ट्रैफिक हवलदार से लेकर बड़े-बड़े घूसखोर पानी की रिश्वत मांग रहे हैं। पानी को पता चल गया है कि इस दुनिया में सस्ती चीजों की कोई कद्र नहीं है। इसलिए उसने भाव दिखाने शुरू कर दिए हैं। पानी के भाव के आगे मनुष्य की सारी अकड़ पानी-पानी हो गई है। कभी सूरजमुखी की तरह खिला रहने वाला मनुष्य मुरझाया हुआ फूलगोभी हो गया है। ‘आज ब्लू है पानी पानी दिल हे सानी सानी ’ के संगीत पर नाचने वाली तितलियों की सारी रौनक चली गई है। अब ये तितलियां पानी के घड़े सिर पर उठाए हुए नजर आ रही हैं। पानी के लिए घर-घर में विश्व युद्ध हो रहा है. जमीन-जायदाद के बजाए पानी का बंटवारा हो रहा है। देवरानी जेठानी से पानी के लिए जंग मोल ले रही है। पानी पर रामायण औऱ महाभारत हो रहे हैं। आजकल ज्यादा पानी लेकर बाहर निकलना जोखिम भरा हो गया है। न जाने कब पानी के लुटेरे पानी लूटकर चले जाएं। कुर्सी से चिपके नेताजी भी कुर्सी छोड़कर पानी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। मेघ भी बरसने के बजाए गरज-गरजकर जले पर नमक छिड़क रहे है। पानी से पंगा लेने वालों को समझ आ रहा है कि यदि पानी करने लगे मनमानी, तो जीवन में कितनी होने लगती है हानि।
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