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created Sep 11th 2019, 13:56 by SakshiThakur
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हिन्दी समेत इस मिट्टी की तमाम भाषाएं हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा हैं। इसमें धर्म, संस्कृति, इतिहास, अध्यात्म, कलाएं, नैतिकता, विचार, विरासत, और मूल्य भी है। जो हमारी समग्र पहचान बनाते है। ये सब किसमें हैं ? जाहिर है, इस देश की स्थानीय भाषाओं में ही। सोचिए अपनी भाषाओं की अव्हेलना करके हम अपने ही अस्तित्व को खत्म कर रहे है। क्या अपनी भाषा से हर दिन दूरी बढ़ाकर हम अपने ही मन को टुकड़ों-टुकड़ों में मार नही रहे है ?
दरअसल ज्ञान, और विज्ञान की हमारी भाषाएं ही सीमित हो चुकी हो चली है, अन्यथा हम किसी विदेशी भाषा को ही ज्ञान-विज्ञान की एकमात्र भाषा न समझ बैठते। खुद भाषा एक विज्ञान है, नृत्य, संगीत, चित्रकला, कहावतों, मुहावरों, लोकोक्तियों, और मिट्टी, पहाड़, हवा, फूल, पत्ती, पशु, पक्षी, नदी से जुड़े शब्दों में ज्ञान और विज्ञान है। यह सोच ही अपने आप में अवैज्ञानिक है कि अपने परिवेश में, अपनी भाषा से सहज ही मिलने वाली जानकारियों, और ज्ञान का कोई मोल नहीं है, और जीवन में सिर्फ किताबों में विदेशी भाषा में दर्ज,सूचनाएं ही महत्व रखती है।
हिंदी दिवस कोई औपचारिकता या रस्म नहीं है। यह दिन हमारे और आपके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है, एक ऐसा मोड़ जो एक ज्यादा सुखी और संतुष्ट जीवन की ओर ले जाता है। हिन्दी से दूरी बनाकर हम क्या-क्या खो रहे हैं। अपनी भाषा की उपेक्षा करके हमने किन पुलों को तोड़ दिया। अपने शब्दों को खोकर हम कितनी राहों पर चलना भूल गए हैं। ये पुल, ये राहें कई तरह के सुखों तक ले जाती हैं, संतुष्टि के शिखरों पर पहुंचाती हैं, हमें हमारी जड़ो से जोड़ती हैं, हजारों बरसों में करोड़ो लोगों द्वारा स्वाभाविक रूप से संजोए गए ज्ञान का पता बताती हैं और एक सार्थक जीवन की ओर ले जाती है। हम में है हिंदी और हिंदी में हैं हम।
दरअसल ज्ञान, और विज्ञान की हमारी भाषाएं ही सीमित हो चुकी हो चली है, अन्यथा हम किसी विदेशी भाषा को ही ज्ञान-विज्ञान की एकमात्र भाषा न समझ बैठते। खुद भाषा एक विज्ञान है, नृत्य, संगीत, चित्रकला, कहावतों, मुहावरों, लोकोक्तियों, और मिट्टी, पहाड़, हवा, फूल, पत्ती, पशु, पक्षी, नदी से जुड़े शब्दों में ज्ञान और विज्ञान है। यह सोच ही अपने आप में अवैज्ञानिक है कि अपने परिवेश में, अपनी भाषा से सहज ही मिलने वाली जानकारियों, और ज्ञान का कोई मोल नहीं है, और जीवन में सिर्फ किताबों में विदेशी भाषा में दर्ज,सूचनाएं ही महत्व रखती है।
हिंदी दिवस कोई औपचारिकता या रस्म नहीं है। यह दिन हमारे और आपके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है, एक ऐसा मोड़ जो एक ज्यादा सुखी और संतुष्ट जीवन की ओर ले जाता है। हिन्दी से दूरी बनाकर हम क्या-क्या खो रहे हैं। अपनी भाषा की उपेक्षा करके हमने किन पुलों को तोड़ दिया। अपने शब्दों को खोकर हम कितनी राहों पर चलना भूल गए हैं। ये पुल, ये राहें कई तरह के सुखों तक ले जाती हैं, संतुष्टि के शिखरों पर पहुंचाती हैं, हमें हमारी जड़ो से जोड़ती हैं, हजारों बरसों में करोड़ो लोगों द्वारा स्वाभाविक रूप से संजोए गए ज्ञान का पता बताती हैं और एक सार्थक जीवन की ओर ले जाती है। हम में है हिंदी और हिंदी में हैं हम।
