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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Oct 9th 2019, 11:01 by VivekSen1328209


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संसद के गत सत्र में जितने विधेयक पारित किए गए हैं, उन्‍हें देखते हुए सत्र को सबसे उत्‍पादक कहा जाना कोई अतिश्‍योक्ति नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्‍पादकता की सही कसौटी उसकी संख्‍या में नहीं, वरन् गुणवत्‍ता में होती है। पारित किए गए विधेयकों की जांच-परख में कितना समय दिया गया, इसे विभिन्‍न दृष्टिकोणों से देखें-समझे जाने की जरूरत है। यह जानना इसलिए भी जरूरी है, क्‍योंकि कहीं भी यह उल्लिखित नहीं है कि जल्‍दबाजी में पारित किया गया कोई कानून प्रशासन के कामकाज को बेहतर कर सकता है।
    ज्ञातव्‍य है कि जम्‍मू-कश्‍मीर, तीन तलाक और राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा परिषद् से संबंधित विधेयक को राज्‍यसभा ने मात्र 4 घंटे में पारित कर दिया था। स्‍पष्‍ट है कि विधेयक से मतभेद रखने वाले और उन मतभेदों का सम्‍मान करने वाले सांसद वहां अनु‍पस्थित थे। दोनों सदनों में नाममात्र के वाद-विवाद के दिखावे के साथ कानूनों को पारित करने की सरकार की मंशा स्‍पष्‍ट थी।
    सदन के नियमों की औपचारिकता को पूरा करने के लिए डीएमके, आरजेडी, सीपीएम आदि दलों को चार से छ: मिनट का समय दिया गया। इतने कम समय में वे अपने विचारों को समग्रता के साथ प्रस्‍तुत नहीं कर सके। एक विचारशील संसद के हित की खातिर ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्‍येक दल को दिए गए समय में संख्‍या का दबाव हो।

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