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बंसोड टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा, छिन्दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्यू बैच प्रांरभ संचालक सचिन बंसोड
created Oct 19th 2019, 01:25 by sachinbansod1609336
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सामान्यत: संसार का त्याग और आत्मा की आराधना एक कठिन कार्य है। सबके लिये सम्भव नहीं आत्म-साधना का सामान्य तथा सरल मार्ग यही है कि अपने साधारण जीवन क्रम में उस उत्कृष्ट दृष्टिकोण को जोड़ लिया जाय तो भौतिकवाद को अध्यात्मवाद बना दे। ऐसा करने से संसार क्रम में न तो बाधा पड़ेगी और अध्यात्म की भी आराधना होती चलेगी। इस प्रसंग को समझने और अपनाने के लियेजीवन के प्रत्येक चरण पर क्रमपूर्वक विचार करते हुए चला जाये। सबसे पहले मानव जीवन के आधार आजीविका को लिया जाये। आजीविका का आशय है- उन साधनों को संचित करना, जिनके आधार पर जीवन यात्रा सम्भव बनाई जाती है। इसको धनार्जन भी कह सकते हैं। जीवन यापन के लिये धन सबको कमाना पड़ता है। कमाई करने के लिये कोई मजदूरी करता है, कोई नौकरी करता है तो कोई व्यापार का सहारा लेता है। धनार्जन के यह सारे काम भौतिकवाद से सम्बन्ध रखते हैं। किन्तु इन कार्यो में आदर्शवाद का समावेश कर दिया जाये तो यही काम आध्यात्मिक बन जायेंगे। अपार्जन में पहला आदर्श तो होना चाहिये, उत्साह और प्रसन्नता का। बहुधा श्रम-साध्य होने के कारण उपार्जन को अरुचिकर कार्य माना जाता है। प्राय: लोगों की इच्छा रहती हैं कि कुछ ऐसा हो जाता कि मेहनत तो कम से कम करनी पड़े, लेकिन धन ज्यादा से ज्यादा मिल जाये। यह विचार आदर्श-हीन हैं।
हर काम चाहे वह बड़ाहो अथवा छोटा पूरी लगन और पूरी तत्परता से करना चाहिये। उसे करने में प्रसन्नता और उत्साह का अनुभव करना चाहिये। जो लोग मजबूरी समझकर रोते-झींकते हुए आजीविका के कामों को बेगार की तरह करते हैं, वे उसके आध्यात्मिक लाभ से वंचित हो जाते हैं। किन्तु जो उसे जीवन का एक आवश्यक कर्त्तव्य मानकर उत्साह और प्रस्न्नता से करते हैं, विचार का विषय यह नहीं है। विचार का विषय यह है कि वह ही खाया जाये जो शारीरिक, मानसिक बौद्धिक तथा आत्मिक चारों प्रकार के स्वास्थ्यों के लिये हर प्रकार से हितकर हो।
हर काम चाहे वह बड़ाहो अथवा छोटा पूरी लगन और पूरी तत्परता से करना चाहिये। उसे करने में प्रसन्नता और उत्साह का अनुभव करना चाहिये। जो लोग मजबूरी समझकर रोते-झींकते हुए आजीविका के कामों को बेगार की तरह करते हैं, वे उसके आध्यात्मिक लाभ से वंचित हो जाते हैं। किन्तु जो उसे जीवन का एक आवश्यक कर्त्तव्य मानकर उत्साह और प्रस्न्नता से करते हैं, विचार का विषय यह नहीं है। विचार का विषय यह है कि वह ही खाया जाये जो शारीरिक, मानसिक बौद्धिक तथा आत्मिक चारों प्रकार के स्वास्थ्यों के लिये हर प्रकार से हितकर हो।
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