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शिक्षा टायपिंग इंस्टीट्यूट कैयर पैथालाजी छिन्दवाड़ा सम्पूर्ण सीपीसीटी की तैयारी थयोरी क्लास (कम्प्यूटर गणित रीजिनिंग सहित) संचालक:- जयंत भलावी मो0नं. 9300467575,7354777233
created Oct 19th 2019, 03:38 by JayantBhalavi
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सर्दियों की आहट मिलते ही केंद्र सरकार के साथ-साथ राष्ट्री य हरित अधिकरण यानीएनजीटी भी पराली जलाने के खिलाफ सक्रिय हो उठता है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला हीरहता है। इससे उत्साजहित नहीं हुआ जा सकता कि पिछले वर्षों की तरह इस बार भी केंद्र सरकार दिल्लीटके पड़ोसी राज्योंी के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक बुलाने पर विचार कर रही है, क्योंसकि अगर ऐसी कोईबैठक होती है तो भी इसके प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि उत्त र भारत आसमान में छाने वालेधूल और धुएं के गुबार से बच सकेगा।
हालांकि सभी इससे भली तरह परिचित हो चुके हैं कि धूल और धुएं के जहरीले गुबार से बना स्मॉधगआम आदमी की सेहत के लिए गंभीर संकट पैदा करता है, ऐसे ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं जिससेकिसान पराली न जलाएं।
भले ही एनजीटी के दबाव में राज्यो सरकारें पराली जलाने से रोकने के कदम उठाने की हामी भर देतीहों, लेकिन बाद में यही अधिक देखने में आता है कि वे कभी संसाधनों के अभाव को बयान करने लगती हैंऔर कभी किसान हित की दुहाई देने लगती हैं। चूंकि पराली को जलाने से रोकने के मामले में जरूरीराजनीतिक इच्छागशक्ति का परिचय देने से इन्काीर किया जा रहा है इसलिए उत्त र भारत हर वर्ष सर्दियोंके मौसम में पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में आने को अभिशप्तन है। यह समस्याक इसलिए गंभीर होती जारही है, क्योंरकि पंजाब और हरियाणा के किसान धान की वे फसलें उगाने लगे हैं जिनमें कहीं अधिकअवशेष निकलता है। यदि केंद्र और राज्यग सरकारें पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम को लेकर सचमुच गंभीरहैं तो उन्हेंल आपस में मिलकर ऐसे कदम उठाने ही होंगे जिनसे किसान पराली जलाने से बचें।
बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि पराली के निस्तांरण का कोई कारगर तरीका अपनानेकी जरूरत है। अगर यह दावा सही है कि किसानों को फसलों के अवशेष नष्ट करने वाले उपकरण सुलभकराए जा रहे हैं तो फिर पंजाब और हरियाणा से पराली जलाने की खबरें क्योंव आ रही हैं कहीं यह कागजीदावा तो नहीं सच जो भी हो, लगता यही है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए जो कुछ किया जाना चाहिए थाउससे कन्नीर काट ली गई।
हालांकि सभी इससे भली तरह परिचित हो चुके हैं कि धूल और धुएं के जहरीले गुबार से बना स्मॉधगआम आदमी की सेहत के लिए गंभीर संकट पैदा करता है, ऐसे ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं जिससेकिसान पराली न जलाएं।
भले ही एनजीटी के दबाव में राज्यो सरकारें पराली जलाने से रोकने के कदम उठाने की हामी भर देतीहों, लेकिन बाद में यही अधिक देखने में आता है कि वे कभी संसाधनों के अभाव को बयान करने लगती हैंऔर कभी किसान हित की दुहाई देने लगती हैं। चूंकि पराली को जलाने से रोकने के मामले में जरूरीराजनीतिक इच्छागशक्ति का परिचय देने से इन्काीर किया जा रहा है इसलिए उत्त र भारत हर वर्ष सर्दियोंके मौसम में पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में आने को अभिशप्तन है। यह समस्याक इसलिए गंभीर होती जारही है, क्योंरकि पंजाब और हरियाणा के किसान धान की वे फसलें उगाने लगे हैं जिनमें कहीं अधिकअवशेष निकलता है। यदि केंद्र और राज्यग सरकारें पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम को लेकर सचमुच गंभीरहैं तो उन्हेंल आपस में मिलकर ऐसे कदम उठाने ही होंगे जिनसे किसान पराली जलाने से बचें।
बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि पराली के निस्तांरण का कोई कारगर तरीका अपनानेकी जरूरत है। अगर यह दावा सही है कि किसानों को फसलों के अवशेष नष्ट करने वाले उपकरण सुलभकराए जा रहे हैं तो फिर पंजाब और हरियाणा से पराली जलाने की खबरें क्योंव आ रही हैं कहीं यह कागजीदावा तो नहीं सच जो भी हो, लगता यही है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए जो कुछ किया जाना चाहिए थाउससे कन्नीर काट ली गई।
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