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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created Oct 21st 2019, 10:25 by subodh khare
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शक के माहौल में पत्रकारिता और पत्रकार की क्या कोई भूमिका हो सकती है। वैसे पत्रकारिता शायद अब है और नहीं भी है। क्योंकि कहा जाता है कि मीडिया की पहुंच और प्रभाव अंतिम व्यक्ति तक है। नहीं इसलिए है, क्योंकि पहुंच और प्रभाव होने के बावजूद मीडिया के पास अपना कहने के लिए कुछ नहीं है। वह तो वही सुन और कह रहा है, जो उसके कान में और जुबान पर बाजार के कारोबारी फूंक रहे हैं।
बाजार मंत्र के तहत मीडिया सरस्वती को छोड़कर लक्ष्मी का भक्त हो गया है और इस भक्ति के चलते मीडिया बिग पर्पस ऑफ पोलिटिकल कॉमर्स का जरखरीद लठैत हो गया है। पोलिटिकल कॉमर्स या राजनीतिक वाणिज्य का बड़ा उद्देश्य है और वह है व्यक्तिगत स्वार्थ को सार्वजनिक हित के रूप में पेश करना, उस पर तथाकथित जन-सहमति प्रयोजित करना और फिर उससे भरपूर लाभांश अर्जित करना।
इस पूरे बिजनेस मॉडल में मीडिया की शायद सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। महत्वपूर्ण इसलिए, क्योंकि मीडिया ही तथाकथित जन-सहमति की आपूर्ति करने में सक्षम है। अपनी पहुंच की वजह से वह जनमत संग्रह का ढोंग कर सकता है और फिर स्वतंत्र स्तंभ होने का दावा कर के निजी स्वार्थ को सार्वजनिक हित का जामा पहना सकता है।
बाजार मंत्र के तहत मीडिया सरस्वती को छोड़कर लक्ष्मी का भक्त हो गया है और इस भक्ति के चलते मीडिया बिग पर्पस ऑफ पोलिटिकल कॉमर्स का जरखरीद लठैत हो गया है। पोलिटिकल कॉमर्स या राजनीतिक वाणिज्य का बड़ा उद्देश्य है और वह है व्यक्तिगत स्वार्थ को सार्वजनिक हित के रूप में पेश करना, उस पर तथाकथित जन-सहमति प्रयोजित करना और फिर उससे भरपूर लाभांश अर्जित करना।
इस पूरे बिजनेस मॉडल में मीडिया की शायद सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। महत्वपूर्ण इसलिए, क्योंकि मीडिया ही तथाकथित जन-सहमति की आपूर्ति करने में सक्षम है। अपनी पहुंच की वजह से वह जनमत संग्रह का ढोंग कर सकता है और फिर स्वतंत्र स्तंभ होने का दावा कर के निजी स्वार्थ को सार्वजनिक हित का जामा पहना सकता है।
