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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रांरभ संचालक सचिन बंसोड

created Oct 23rd 2019, 01:31 by sachin bansod


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संस्‍कृत से वास्‍वतिक रामायण को अनुवादित करने वाले तुलसीदास जी हिन्‍दी और भारतीय तथा विश्‍व साहित्‍य के महान कवि हैं। तुलसीदास के द्वारा ही बनारस के प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर की स्‍थापना हुयी। अपनी मृत्‍यु तक वो वाराणसी में ही रहे। वाराणसी का तुलसी घाट का नाम उन्‍हीं के नाम पर पड़ा है। गोस्‍वामी तुलसीदास एक महान हिन्‍दू संत, समाज सुधारक के साथ ही दर्शनशास्‍त्र और कई प्रसिद्ध किताबों के भी रचयिता थे। राम के प्रति अथाह प्रेम की वजह से ही वे महान महाकाव्‍य रामचरित मानस के लेखक बने। तुलसीदास को हमेशा वाल्मिकी के अवतरण के रूप में प्रशंसा मिली। तुलसीदास ने अपना पूरा जीवन शुरूआत से अंत तक बनारस में ही व्‍यतीत किया। तुलसीदास का जन्‍म श्रावण मास के सातवें दिन में चमकदार अर्ध चन्‍द्रमा के समय पर हुआ था। उत्‍तर प्रदेश के यमुना नदी के किनारे राजापुर (चित्रकुट) को तुलसीदास का जन्‍म स्‍थान माना जाता है। इनके माता-पिता का नाम हुलसी और आत्‍माराम दुबे है। तुलसीदास के जन्‍म दिवस को लेकर जीवनी लेखकों के बीच कई विचार है। इनमें से कई का विचार था कि इनका जन्‍म विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1554 में हुआ था लेकिन कुछ का मानना है कि तुलसीदास का जन्‍म वर्ष 1532 हुआ था। उन्‍होंने 126 साल तक अपना जीवन बिताया। एक कहावत के अनुसार जहॉं किसी बच्‍चे का जन्‍म 9 महीने में हो जाता है वहीं तुलसीदास ने 12 महीने तक मॉं के गर्भ में रहे। उनके पास जन्‍म से ही 32 दॉंत थे और वो किसी पॉच साल के बच्‍चे की तरह दिखाई दे रहे थे। ये भी माना जाता है कि उनके जन्‍म के बाद वो रोने के बजाय राम-राम बोल रहे थे। इसी वजह से उनका  नाम रामबोला पड़ गया। इस बात को उन्‍होंने विनयपत्रिका में भी बताया है। इनके जन्‍म के चौथे दिन इनके पिता की मृत्‍यु हो गयी थी। अपने माता पिता के निधन के बाद अपने एकाकीपन के दुख को तुलसीदास ने कवितावली और विनयपत्रिका में भी बताया है। चुनिया जो कि हुलसी की सेविका थी, ने तुलसीदास को उनके  माता-पिता के निधन के बाद अपने शहर हरिपुर ले कर गयी। लेकिन दुर्भाग्‍यवश वो भी तुलसीदास का ध्‍यान सिर्फ साढ़े पॉंच साल तक ही रख पायी और चल बसी। इस घटना के बाद गरीब और अनाथ तुलसीदास घर-घर जाकर भीख मॉंग कर अपना पालन-पोषण करने लगे। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने एक ब्राह्मण का रूप लेकर रामबोला की परवरिश की। तुलसीदासजी ने खुद भी अपने जीवन के कई घटनाओं और तथ्‍यों का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है।  उनके जीवन के दो प्राचीन स्‍त्रोत भक्‍तमाल और भक्ति रस बोधिनी को क्रम शरू नभादास और प्रियदास के द्वारा लिखा गया। नभादास ने अपने लेख में तुलसीदास को वाल्मिकी का अवतार बताया है।

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