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शिक्षा टायपिंग इंस्टीट्यूट कैयर पैथालाजी छिन्दवाड़ा सम्पूर्ण सीपीसीटी की तैयारी थयोरी क्लास (कम्प्यूटर गणित रीजिनिंग सहित) संचालक:- जयंत भलावी मो0नं. 9300467575,7354777233
created Oct 23rd 2019, 04:31 by subhashydv
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जिंदगी में शायद अब कुछ नया करने की इच्छाी ही नहीं बची थी, शायद मेरे सपने हीकम थे। रात को श्रीमती जी ने खाने में खिचड़ी बनाई थी, शायद उसका मन नहीं था खाना बनाने का। मैंने भी वो खिचड़ी बड़े चाव से चटनी के साथ खाई और खाते वक्तम भी मैं यही सोच रहा था कि ये भी तोएक इंसान ही है जैसे में पूरा दिन एक ही काम कर के थक जाता हूं ठीक वैसे ही ये भी तो थक जातीहोगी। इसी विचार में डूबे हुए पूरी खिचड़ी कब खत्मन हो गयी पता ही नहीं चला, खाली थाली देखकरश्रीमती जी को लगा कि शायद आज ज्या दा ही भूखे हैं और मैंने इन्हेंं खाना न देकर ये खिचड़ी खिला दी।ये सोचते हुए उसने कब थाली में और खिचड़ी डाल दी पता ही नहीं चला। उदास मन को दबाते हुए आखिरउसने पूछ ही लिया कैसी बनी। शायद अच्छीो है इसीलिए बहुत जल्दीी खा गए। शायद पहली बार जिंदगीमें ऐसा लगा था की मैं जो भी करता हूं उसमें मेरा खुद का स्वा़र्थ होता है पर ये जो करती है वो सबके लिएकरती है और हमें भी उसके दु:ख दर्द का ख्या ल रखना चाहिए। मैंने खुश होते हुए हां में सर हिला दिया कीबहुत अच्छीो बनी है। खाना खत्म कर के और ईश्वहर का धन्यभवाद करते हुए मैंने हाथ धोये और कुछ देरबाहर टहलने निकल गया रोज की तरह। श्रीमती जी अपना काम करने में लग गई। बर्तन साफ करनाचौका साफ करना और विस्तरर वगेरा लगाना। जब मैं आधे घंटे बाद वापस आया तो रोज की ही तरह सबतैयार मिला साफ सुथरा विस्तीर, चारपाई के नीचे पानी का गिलास श्रीमती जी मेरे सोने के बाद सोती थीऔर मेरे जागने से पहले जाग जाती थी। में विस्तैर पर लेट गया और सोचने लगा अपने पूरे दिन के बारेमें की कल क्या करना है कैसे करना है।
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जिंदगी में शायद अब कुछ नया करने की इच्छाी ही नहीं बची थी, शायद मेरे सपने हीकम थे। रात को श्रीमती जी ने खाने में खिचड़ी बनाई थी, शायद उसका मन नहीं था खाना बनाने का। मैंने भी वो खिचड़ी बड़े चाव से चटनी के साथ खाई और खाते वक्तम भी मैं यही सोच रहा था कि ये भी तोएक इंसान ही है जैसे में पूरा दिन एक ही काम कर के थक जाता हूं ठीक वैसे ही ये भी तो थक जातीहोगी। इसी विचार में डूबे हुए पूरी खिचड़ी कब खत्मन हो गयी पता ही नहीं चला, खाली थाली देखकरश्रीमती जी को लगा कि शायद आज ज्या दा ही भूखे हैं और मैंने इन्हेंं खाना न देकर ये खिचड़ी खिला दी।ये सोचते हुए उसने कब थाली में और खिचड़ी डाल दी पता ही नहीं चला। उदास मन को दबाते हुए आखिरउसने पूछ ही लिया कैसी बनी। शायद अच्छीो है इसीलिए बहुत जल्दीी खा गए। शायद पहली बार जिंदगीमें ऐसा लगा था की मैं जो भी करता हूं उसमें मेरा खुद का स्वा़र्थ होता है पर ये जो करती है वो सबके लिएकरती है और हमें भी उसके दु:ख दर्द का ख्या ल रखना चाहिए। मैंने खुश होते हुए हां में सर हिला दिया कीबहुत अच्छीो बनी है। खाना खत्म कर के और ईश्वहर का धन्यभवाद करते हुए मैंने हाथ धोये और कुछ देरबाहर टहलने निकल गया रोज की तरह। श्रीमती जी अपना काम करने में लग गई। बर्तन साफ करनाचौका साफ करना और विस्तरर वगेरा लगाना। जब मैं आधे घंटे बाद वापस आया तो रोज की ही तरह सबतैयार मिला साफ सुथरा विस्तीर, चारपाई के नीचे पानी का गिलास श्रीमती जी मेरे सोने के बाद सोती थीऔर मेरे जागने से पहले जाग जाती थी। में विस्तैर पर लेट गया और सोचने लगा अपने पूरे दिन के बारेमें की कल क्या करना है कैसे करना है।
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