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साँई टायपिंग इन्स्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मोबाईल नम्बर-9098909565
created Nov 8th 2019, 06:18 by sandhya shrivatri
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एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे। तभी एक राहगरी वहां से गुजरा तो महात्मा को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रूक गया। वो संत से पूछने लगा महात्मा एक बात बताईये कि यहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी-अभी इस जगह पर आया हूं और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई किशेष जानकारी नहीं है।
इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओं कि तुम जिस जगह से आये वो वहां के लोग कैसे है? इस पर उस आदमी ने कहा उनके बारे में क्या कहूं महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यहां बसेरा करने के लिए आया हूं। महात्मा ने जवाब दिया बंधू तुम्हे इस गांव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे। वह आदमी आगे बढ़ गया।
थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है महात्मा जी मैं इस गांव में नया हूं और परदेश से आया हूं और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूं लेकिन मुझे यहां की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसी है और यहां रहने वाले लोग कैसे है?
महात्मा ने इस बार फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहां कि मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओं कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वहां रहने वाले लोग कैसे है। उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा गुरूजी जहां से मैं आया हूं वहां भी सभ्य सुलझे हुए और नेक दिल इन्सान रहते है मेरा वहां से कहीं और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूं और यहां की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था। इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू तुम्हे यहां भी नेक दिल और भले इन्सान मिलेगे। वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया।
शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग-अलग जवाब दिए हमें कुछ भी समझ नहीं आया। इस पर मुक्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है। अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमें अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई चाहें तो हमें बुरे ही मिलेंगे। सब देखने के नजरिये पर निर्भर करता है।
इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओं कि तुम जिस जगह से आये वो वहां के लोग कैसे है? इस पर उस आदमी ने कहा उनके बारे में क्या कहूं महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यहां बसेरा करने के लिए आया हूं। महात्मा ने जवाब दिया बंधू तुम्हे इस गांव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे। वह आदमी आगे बढ़ गया।
थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है महात्मा जी मैं इस गांव में नया हूं और परदेश से आया हूं और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूं लेकिन मुझे यहां की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसी है और यहां रहने वाले लोग कैसे है?
महात्मा ने इस बार फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहां कि मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओं कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वहां रहने वाले लोग कैसे है। उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा गुरूजी जहां से मैं आया हूं वहां भी सभ्य सुलझे हुए और नेक दिल इन्सान रहते है मेरा वहां से कहीं और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूं और यहां की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था। इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू तुम्हे यहां भी नेक दिल और भले इन्सान मिलेगे। वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया।
शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग-अलग जवाब दिए हमें कुछ भी समझ नहीं आया। इस पर मुक्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है। अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमें अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई चाहें तो हमें बुरे ही मिलेंगे। सब देखने के नजरिये पर निर्भर करता है।
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