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created Nov 8th 2019, 06:48 by DeendayalVishwakarma
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पूर्व भारत में आजीवन निर्वासन का दंडादेश कारागार में किसी बंदी द्वारा आजीवन कठोर कारावास के रूप में भोगा जाता था। जब तक कि उक्त दंडादेश किसी समुचित प्राधिकारी द्वारा दण्डसंहिता या दण्ड प्रक्रिया संहिता के सुसंगत उपबंधों के अधीन कम न कर दिया जाये या उसका परिहार न कर दिया जाये तब तक आजीवन कारावास से दंडादेश की अवधि निश्चित मानी गयी है किंतु केवल ऐसा किसी विशेष प्रयोजन के लिये किया जा सकात है न कि अन्य किसी उद्देश्य के लिये। चूंकि आजीवन निर्वासन, आजीवन कारावास के संतुल्य है, इसलिए इसे अनिश्चित अवधि के लिये ही माना जायेगा, इस प्रकार प्राप्त किया गया परिहार व्यवहारिक रूप से दोषसिद्ध व्यक्ति के लिये सहायक नहीं हो सकता क्योंकि उसकी मृत्यु के समय का अनुमान नहीं लागया जा सकता। यही कारण है कि समुचित सरकार को समर्थ बनाने के लिये नियमों के अधीन प्रक्रिया का उपबंध किया गया है ताकि दंड प्रकिया संहिता के अधीन सुसंगत संघटकों पर विचार करके प्राप्त किये गये दंड के परिहार की अवधि निर्धारित की जा सके।
परिहार के प्रश्न पर विचार करना एक मात्र रूप से समुचित सरकार के कार्य क्षेत्र के अंतर्गत आता है, और इस मामले में यह स्वीकार किया गया है कि हालांकि समुचित सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन कतिपय परिहार नियत किये हैं फिर भी वह दंड की समूर्ण मात्रा का परिहार नहीं कर सकती। अत: हम यह निर्धारित करते हैं कि याची ने रिहा होने का अधिकार अभी तक अर्जित नहीं किया है। यदि आजीवन निर्वासन की अवधि का कोई भाग आजीवन कठोर कारावास की अवधि के उतने ही भाग संतुल्य माना जाता है, तब निर्वासन की संपूर्ण अवधि को आजीवन कठोर कारावास माना जाना चाहिए। आजीवन कारावास इस प्रकार का दंड है। जो सामान्य कारावास से भिन्न होता है और सामान्य कारावास दो प्रकार का होता है अर्थात् कठोर और सादा।
विधान मण्डल के लिये यह आवश्यक था कि विशेष रूप से यह उल्लेख करता है आजीवन कारावास अब आजीवन कठोर कारावास माना जायेगा क्योंकि आजीवन कारावास का दण्ड गंभीर अपराधों के लिये हैं आरोपित किया जाता है।
परिहार के प्रश्न पर विचार करना एक मात्र रूप से समुचित सरकार के कार्य क्षेत्र के अंतर्गत आता है, और इस मामले में यह स्वीकार किया गया है कि हालांकि समुचित सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन कतिपय परिहार नियत किये हैं फिर भी वह दंड की समूर्ण मात्रा का परिहार नहीं कर सकती। अत: हम यह निर्धारित करते हैं कि याची ने रिहा होने का अधिकार अभी तक अर्जित नहीं किया है। यदि आजीवन निर्वासन की अवधि का कोई भाग आजीवन कठोर कारावास की अवधि के उतने ही भाग संतुल्य माना जाता है, तब निर्वासन की संपूर्ण अवधि को आजीवन कठोर कारावास माना जाना चाहिए। आजीवन कारावास इस प्रकार का दंड है। जो सामान्य कारावास से भिन्न होता है और सामान्य कारावास दो प्रकार का होता है अर्थात् कठोर और सादा।
विधान मण्डल के लिये यह आवश्यक था कि विशेष रूप से यह उल्लेख करता है आजीवन कारावास अब आजीवन कठोर कारावास माना जायेगा क्योंकि आजीवन कारावास का दण्ड गंभीर अपराधों के लिये हैं आरोपित किया जाता है।
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