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कुदरत बहुत ताकतवर होता है। ये इन्सान को इस तरह से सबक सिखाता है कि वो कभी सोच भी नहीं सकता कि ऐसा भी हो सकता है। इसलिए कई दफा इन्सान को जैसा सोचा है वैसा नहीं होता बल्कि वैसा होता है जैसा कुदरत चाहता है। कुदरत का इंसाफ कुदरत अपने ही तरीके से करता है।
किचन में आग जल रही थी और अन्दर से आवाज आ रही थी बचाओ बचाओ मगर सब ये आवाज सुन कर भी उस घर का हर सदस्य बहरा बना हुआ था। अभी कुछ ही महीने तो हुए थे रिया और अमित की शादी को। मगर इस कलमुहे दहेज ने रिश्ते की नींव हिला कर रख दी। सास-ससुर, ननद और यहां तक कि उसका अपना पति भी उसी दहेज के ताने मारता था। मगर रिया हर ताने को जहर के घूंट की तरह पी जाती। ससुराल वालों के जुल्म अपनी हर इन्तेहां पार कर रहे थे। कभी-कभी तो रिया सोचती कि ऐसी जिंदगी से तो अच्छा है मौत को गले लगा दिया जाए। फिर उसे अपने माता-पिता का ख्याल आता है कि उन पर क्या बीतेगी। बस यही चीज उसे कोई भी गलत कदम उठाने से रोक लेती थी। इसी तरह एक-एक कर सभी दिन बीतते जा रहे थे। उसके ससुराल वाले न जाने कहां से उसे तंग करने के लिए रोज कोई बहाना खोज लेते थे। कभी उसके बनाये खाने में कमी निकालते कभी उससे इतना काम करवाते कि वो ठीक से आराम भी न कर पाती। न जाने उसे कब इस अत्याचार से मुक्ति मिलती और उसके साथ हो रहे अन्याय के लिए उसे इन्साफ मिलता। लेकिन अमित और उसके माता-पिता शायद इस रोज-रोज के खेल से तंग आ चुके थे और चाहते थे कि ये सब एक दम से खत्म कर दिया जाए।
किचन में आग जल रही थी और अन्दर से आवाज आ रही थी बचाओ बचाओ मगर सब ये आवाज सुन कर भी उस घर का हर सदस्य बहरा बना हुआ था। अभी कुछ ही महीने तो हुए थे रिया और अमित की शादी को। मगर इस कलमुहे दहेज ने रिश्ते की नींव हिला कर रख दी। सास-ससुर, ननद और यहां तक कि उसका अपना पति भी उसी दहेज के ताने मारता था। मगर रिया हर ताने को जहर के घूंट की तरह पी जाती। ससुराल वालों के जुल्म अपनी हर इन्तेहां पार कर रहे थे। कभी-कभी तो रिया सोचती कि ऐसी जिंदगी से तो अच्छा है मौत को गले लगा दिया जाए। फिर उसे अपने माता-पिता का ख्याल आता है कि उन पर क्या बीतेगी। बस यही चीज उसे कोई भी गलत कदम उठाने से रोक लेती थी। इसी तरह एक-एक कर सभी दिन बीतते जा रहे थे। उसके ससुराल वाले न जाने कहां से उसे तंग करने के लिए रोज कोई बहाना खोज लेते थे। कभी उसके बनाये खाने में कमी निकालते कभी उससे इतना काम करवाते कि वो ठीक से आराम भी न कर पाती। न जाने उसे कब इस अत्याचार से मुक्ति मिलती और उसके साथ हो रहे अन्याय के लिए उसे इन्साफ मिलता। लेकिन अमित और उसके माता-पिता शायद इस रोज-रोज के खेल से तंग आ चुके थे और चाहते थे कि ये सब एक दम से खत्म कर दिया जाए।
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