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hindi passage
created Nov 8th 2019, 16:01 by amit12
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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ने गुरुवार को एक नए सफर की शुरुआत की है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के मुताबिक यह राज्य दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बंट गया। बीते 5 अगस्त को नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35-ए के जरिये जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधानों को खत्म करने का एलान किया था।
अब जम्मू-कश्मीर में पुड्डुचेरी जैसी विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख बिना विधायिका के चंडीगढ़ जैसा होगा। नई जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 107 सदस्य हैं, जिनकी संख्या परिसीमन के बाद बढ़कर 114 हो जाएगी। राज्यपाल की जगह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अब उप-राज्यपाल होंगे। शुरुआत में दोनों का हाईकोर्ट एक ही होगा लेकिन एडवोकेट जनरल अलग-अलग होंगे।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा पारित सभी विधेयक मंजूरी के लिए उप-राज्यपाल के पास जाएंगे, जो उनको मंजूरी दे सकते हैं, रोक सकते हैं या दोबारा विचार करने के लिए विधानसभा के पास भेज सकते हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 150 से ज्यादा पुराने कानून खत्म हो गए हैं, जबकि 100 से ज्यादा नए कानून लागू हो गए हैं। वर्षों से चली आ रहे एक सिस्टम को नई शक्ल लेने में थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन एक उलझाव भी अभी बचा हुआ है।
अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जो 14 नवंबर को इस पर सुनवाई करेगा। विशेषज्ञों का सवाल है कि अगर कोर्ट ने इसे पुनरावलोकन के योग्य माना तो फिर क्या होगा/? जो भी हो, अभी तो सबसे बड़ी जरूरत कश्मीरियों को इस बदलाव के लिए राजी करने की है। केंद्र सरकार शुरू से कह रही है कि उसने अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने का फैसला कश्मीरियों के हित में किया है, ताकि केंद्र की तमाम योजनाओं और कानूनों का लाभ उन्हें मिल सके।
अब जम्मू-कश्मीर में पुड्डुचेरी जैसी विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख बिना विधायिका के चंडीगढ़ जैसा होगा। नई जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 107 सदस्य हैं, जिनकी संख्या परिसीमन के बाद बढ़कर 114 हो जाएगी। राज्यपाल की जगह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अब उप-राज्यपाल होंगे। शुरुआत में दोनों का हाईकोर्ट एक ही होगा लेकिन एडवोकेट जनरल अलग-अलग होंगे।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा पारित सभी विधेयक मंजूरी के लिए उप-राज्यपाल के पास जाएंगे, जो उनको मंजूरी दे सकते हैं, रोक सकते हैं या दोबारा विचार करने के लिए विधानसभा के पास भेज सकते हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 150 से ज्यादा पुराने कानून खत्म हो गए हैं, जबकि 100 से ज्यादा नए कानून लागू हो गए हैं। वर्षों से चली आ रहे एक सिस्टम को नई शक्ल लेने में थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन एक उलझाव भी अभी बचा हुआ है।
अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जो 14 नवंबर को इस पर सुनवाई करेगा। विशेषज्ञों का सवाल है कि अगर कोर्ट ने इसे पुनरावलोकन के योग्य माना तो फिर क्या होगा/? जो भी हो, अभी तो सबसे बड़ी जरूरत कश्मीरियों को इस बदलाव के लिए राजी करने की है। केंद्र सरकार शुरू से कह रही है कि उसने अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने का फैसला कश्मीरियों के हित में किया है, ताकि केंद्र की तमाम योजनाओं और कानूनों का लाभ उन्हें मिल सके।
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