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बंसोड टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा, छिन्दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्यू बैच प्रांरभ संचालक सचिन बंसोड
created Nov 9th 2019, 00:55 by SARITA WAXER
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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई, तब सत्ताधारी कौन, यह स्पष्ट था। तलाशने पर विरोधी नही मिल रहे थे। चुनावों के बाद विरोधी दिखेंगे ही नहीं, ऐसे बयान देवेंद्र फडणवीस दे रहे थे। परिणाम आने के बाद अलग तस्वीर सामने आई है। विरोधी स्पष्ट है, लेकिन सत्ताधारी नहीं दिख रहे। हम विपक्ष की बेंच पर बैठेंगे, क्योंकि जनादेश हमोर पक्ष में नहीं हैं, ऐसी भूमिका कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने ले रखी है। इस वजह से विरोधी कौन, यह स्पष्ट है। लेकिन सरकार गायब है। विधानसभा की अवधि आज रात को खत्म हो रही है, इसके बाद भी सरकार स्थापित नहीं हुई है। पेंच बढ़ता जा रहा है और तस्वीर अभी भी अस्पष्ट ही है। भाजपा व शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा। महायुती को स्पष्ट बहुमत भी मिला। भाजपा सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनकर सामने आई। परिणाम स्पष्ट था। इस वजह से किसी भी तरह के विवाद या देरी का कारण ही नहीं था। लेकिन शिवसेना ने इसके बाद अपनी भूमिका इस तरह रखी कि हमें ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद व सत्ता में बराबर हिस्सेदारी चाहिए। भाजपा व शिवसेना का गठबंधन हुआ यह सच है, लेकिन सच यह भी है कि दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा। देवेंद्र फडणवीस के आभामंडल की वजह से कहा जा रहा था कि 288 सीटों में से महायुती को 220 से ज्यादा व अकेले भाजपा को ही 145 सीटें मिलेंगी। शिवसेना की सीटों को जान-बूझकर कम करना है। तात्पर्य स्पष्ट था कि शिवसेना गठबंधन में शामिल रहेगी जरूर लेकिन गुपचुप बैठी रहेगी। जो मिलेगा, वह ले लेगी। शिवसेना की इच्छा इतनी थी कि कुछ भी हो जाए तो सत्ता की चाबी उनके पास ही रहे। नतीजा भी एकदम ऐसा ही आया है, जैसा उद्धव ठाकरे को चाहिए थे। इन चुनावों मे चर्चा में रहें शरद पवार और चुनावों के बाद बाद सामना वीर बनकर सामने आए संजय राउत। सत्ता का पेंच जब बढ़ता जा रहा हो, तब शरद पवार प्रक्रिया में कहां हैं? हकीकत तो यह है कि पवार को ऐसी राजनीति का चैम्पियन माना जाता है। पवार ने तय किया तो सेना को समर्थन देकर सरकार बना सकते हैं। उन्हें यही करना चाहिए, ऐसा कई लोगों को लगता हैं। नतीजे आने के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग शिवसेना, कांग्रेस, राष्ट्रवादी का समीकरण देते दिखे। 2014 में पवार ने स्थिरता के लिए भाजपा को समर्थन दिया था और सत्ता के खेल में बाजी ही पलट दी थी। लेकिन, पवार इस बार ऐसा करने वाले नहीं हैं। इस प्रकार की राजनीति से उनकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। आज के पवार बदले-बदले नजर आ रहे हैं। मुंबई में सरगर्मियों तेज हैं, पारा चढ़ा हुआ है, इसके बाद भी पवार बांध पर हैं, यह उनकी बदली राजनीति का प्रमाण हैं।
