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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Dec 12th 2019, 07:00 by lovelesh shrivatri


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जिन्‍दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्‍या किया जा सकता है क्‍योंकि इतनी जल्‍दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्‍या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूं हर चीज या बदलाव की शुरूआत बहुत ही साधारण ढंग से होती है। कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है  जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्‍दगी में एक नीव का पत्‍थर भी साबित हो सकता है। इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्‍वपूर्ण है।  
एक लड़का सुबह-सुबह दौड़ने को जाया करता था। आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था। वो बूढ़ी महिला तालाब के किनारे छोटे-छोटे कछुवों की पीठ को साफ किया करती थी। एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची। वो लड़का महिला के पास गया  और उनका अभिवादन कर बोला नमस्‍ते आंटी। मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ करते हुए देखता हैूं आप ऐसा किस वजह से करते हो?  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और इस पर लड़के को जवाब दिया मैं हर रविवार यहां आती हूं और इन छोटे-छोटे कछुवों की पीठ साफ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूं। क्‍योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है  उस पर कचरा जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का  सामना करते है। कुछ समय  बाद तक अगर ऐसा ही रहे  तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ करती हूं।  
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था। उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला बैशक आप बहुत अच्‍छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी  बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्‍या क्‍योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा ना। तब वहां बोली किसी एक को तो शुरूवात करनी होगी। अगर सब ये ही सोचते रहे तो कोई भी नहीं करेगा।  

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