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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Dec 12th 2019, 12:10 by AnujGupta1610


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नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद में हुई चर्चा से यह साफ हो गया है कि 2016 और 2019 की स्थिति में अंतर है। जद ने उस समय विरोध किया था लेकिन इस बार साथ है। पूर्वोत्‍तर के सांसदों ने विरोध किया था जबकि इस बार सिक्किम को छोड़कर सभी सांसदों ने समर्थन किया यानी तीन सालों में विरोध का स्‍वर कमजोर हुआ है। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्वोत्‍तर के नेताओं, गैर राजनीतिक संगठनों ने लगातार संवाद तथा उनकी मांगों के अनुरूप किए गए बदलाव के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। साथ ही, दूसरे दलों ने भी समझा है कि इसे मानवीय एवं भारत के दायित्‍व के नाते लिया जाना चाहिए। एक साथ तीन तलाक के खिलाफ विधेयक का विरोध करने में जो तर्क दिए गए वही इसमें भी दिए जा रहे हैं। उसे भी संविधान के मौलिक अधिकारों के खिलाफ कहा गया था। हालांकि कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों को शांत होकर राजनीति से ऊपर उठकर विचार किए जाने की आवश्‍यकता थी। 1947 में विभाजन के बाद दोनों ओर के नागरिक एक ओर से दूसरी ओर गए थे। काफी संख्‍या में हिंदू उस समय के संयुक्‍त पाकिस्‍तान में रह गए। तब से उनका धार्मिक आधार पर उत्‍पीड़न दमन चल रहा है। पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन पारसी और ईसाइयों को खत्‍म करने की कोशिश हुई। वे स्‍वाभाविक ही भागकर भारत आते हैं। ऐसे लोगों को भगा देना या उनको भारत का नागरिक नहीं बनाना किसी दृष्टि से उचित नहीं। 1947 में जिस तरह पाकिस्‍तान से भारत आने वालों को नागरिकता दी गई उसी प्रक्रिया के तहत लगातार आते रहने वालों को भी मिलनी चाहिए। यह एक सामान्‍य बात है। इसलिए इस पर जो राजनीति हो रही है, वह दुर्भाग्‍यपूर्ण है। यह किसी तरह भारतीय मुसलमानों के खिलाफ विधेयक नहीं है। दूसरे, यह किसी को भारत की नागरिकता दिए जाने का निषेध नहीं करता। नागरिकता कानून जस-का-तस है। उसमें केवल इस श्रेणी के लोगों के लिए दो प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा। किसी देश में रहने वाला कोई भी भारत की नागरिकता के लिए निर्धारित प्रक्रिया के तहत आवेदन कर सकता है, और अर्हता पूरी होने पर उसे नागरिकता दी जा सकती है।

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