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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रांरभ

created Dec 13th 2019, 08:43 by sachinbansod1609336


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समय के साथ बदलाव ही तरक्‍की का मूल मंत्र है। यह बात किसी व्‍यक्ति के साथ-साथ देश पर भी लागू होती है। विश्‍व बैंक ने हाल ही में भारत की सुस्‍त अर्थव्‍यवस्‍था में तेजी लाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। ये सुझाव दरअसल नीतियों में समय के साथ बदलाव लाने का आग्रह भर है। विश्‍व बैंक का कहना है कि भारत में भूमि और श्रम संबंधी कानून काफी सख्‍त है और व्‍यापार की नीतियां भी संरक्षणवादी हैं। इसके कारण अंतराष्‍ट्रीय निवेदशक भारत का रुख नहीं कर पा हे हैं। दर असल उद्योग-व्‍यापार के रास्‍ते में आने वाली हर तरह की बाधाओं को दूर करना बुनियादी जरूरत है। अंतराष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा में वही कंपनी टिकी रह सकती है जिसके रास्‍ते में बाधाओं कम हो। लगभग तीन दशकों में भारत सरकार ने भी कारोबारी सुगमता को ध्‍यान में रखकर कई बदलाव किए हैं। उद्योग-व्‍यापार कोइसका लाभ भी मिला है। आज हम तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था हैं। भूमि और श्रम कानूनों को उद्योग-व्‍यापार के अनुकूल बनाने के प्रयास पूर्ववर्ती यूपीए सरकारों ने भी किए थे, बाद में एनडीए की मोदी सरकार ने भी किए हैं। इसका नतीजा है कि कारोबारी सुगमता सूचकांक में भारतकी स्थिति बेहतर हुई है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कारोबारी सुगमता में भारत का स्‍थान 63 ही हैं।  
    देश को हालिया आर्थिक सुस्‍ती से निकाल कर फिर से पटरी पर लाने केलिए विश्‍व बैंक के सुझावों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि यह बात भी ध्‍यान देने वाली है कि प्राय: सभी बड़ी आर्थिक शक्तियां इस मामले में दोहरा रवैया अपनाती हैं। अपने देश के लिए अलग और अन्‍य देशों के लिए अलग। अमरीका और चीन के बीच पिछले कुछ समय से जारी ट्रेड वार की वजह भी अपने लिए संरक्षणवादी नीतियां लागू करना है। देखा जा रहा है कि कई देशों ने विश्‍व व्‍यापार संगठन की सिर्फ अनदेखी की है बल्कि इसके औचित्‍य पर भी सवाल उठाए हैं। इसकी वजह विकासशील देशों को उतना लाभ नहीं हुआ जितनी अपेक्षा की गई थी। विश्‍व बैंक को इस पर भी जरूर ध्‍यान नहीं देने के कारण ही उन शक्तियों को फिर से सिर उठाने का मौका मिल रहा है जो हमेशा से उदारवादी नीतियों का विरोध करते रहे है। भारत के लिए अच्‍छी बात यही है कि अमरीका-यूरोप की तरह यहां क्षेत्रीयतावादी या संरक्षणवादी विचारधारा का उभार नहीं दिख रहा है। अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एनडीए की नरेन्‍द्र मोदी सरकार पर ही लोगों ने अपार भरोसा जताया है। इसलिए देश को सुस्‍ती के माहौल से निकालने के लिए मोदी सरकार को हर संभव सुधार करना ही चाहिए। आज अर्थव्‍यवस्‍था में पर्याप्‍त धन है परन्‍तु यह उन कम आय वाले 120 करोड़ लोगों के पास नहीं है जो खपत द्वारा अर्थव्‍यवस्‍था में सहयोग दे सकते हैं।
 

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