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Sarode online typing center harda new cpct set 2020

created Jan 6th 2020, 06:32 by Sarode online harda


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एक गांव में पारो नामक एक गरीब विधवा रहती थी। उसके एक पुत्र था। वह इतनी गरीब थी कि घर में चार बर्तन भी ढंग के नहीं थे। लड़का अभी छोटा था। पारो ने बड़े प्‍यार से उसका नाम नसीब सिंह रखा था, मगर वह इतना बदनसीब था कि उसके पैदा होने के कुछ समय बाद ही एक बीमारी से उसके पिता की मृत्‍यु हो गई। पारो घरों में चौका-बर्तन आदि करके उसे पाल रही थी। उसे पक्‍का विश्‍वास था कि नसीब सिंह बड़ा होकर उसके सारे संकट दूर कर देगा और उसका बुढ़ापा चैन से गुजरेगा। इसी आस में रात-दिन मेहनत करके वह अपने बेटे को पाल रही थी। नसीब सिंह था तो छोटा, किन्‍तु समझदार बहुत था। संयम और धीरज की उसमें कमी थी। किसी भी बात को गहराई तक जानने की उसमें प्रबल उत्‍सुकता रहती थी। एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा- माँ! हम इतने गरीब क्‍यों हैं? यह सब तो ईश्‍वर की मर्जी है बेटे। दुखी स्‍वर में पारो ने कहा-सब नसीब की बात है। मगर नसीब सिंह यह उत्‍तर पाकर संतुष्‍ट नहीं हुआ। वह बोला- ईश्‍वर की ऐसी मर्जी क्‍यों हैं ? बेटा यह तो ईश्‍वर ही जाने। अगर ईश्‍वर ही जाने तो ठीक है, मैं ईश्‍वर से ही पूछूंगा कि हम इतने गरीब क्‍यों हैं, बताओं माँ। बताओं कि ईश्‍वर कहाँ मिलेगा? पारो तो वैसे ही परेशान रहती थी। अत: उसकी बातों से उकताकर उसने कह दिया- वह जंगलों में रहता हैं, लेकिन तुम वहां जाना। लेकिन नसीब सिंह दिल-ही-दिल में उसी क्षण, इरादा बना लिया कि वह ईश्‍वर को ढूंढेगा और उससे पूछेगा कि आखिर हम इतने गरीब क्‍यों हैं? एक दिन वह जंगल की ओर चल दिया। जंगल घना और भयानक था। चलते-चलते नसीब सिंह बुरी थक गया था, मगर भगवान की परछाई भी उसे दिखाई नहीं दी थी। अत: थक हारकर वह पत्‍थर की एक शिला पर बैठ गया और सोचने लगा कि भगवान तो यहाँ कहीं नहीं है। आखिर गरीबी दूर कैसे हो? तभी संयोगवश मृत्‍युलोक का भ्रमण करते-करते शिव पार्वती उधर ही निकले। उन्‍होंने बच्‍चे को वहाँ बैठे देखा तो उन्‍हें बड़ा अचरज हुआ कि यह अबोध बालक इस बीहड़ जंगल में बैठा क्‍या कर रहा है?

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