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देश की सर्वोच्च अदालत ने एक अहम घोषणा में कहा है कि देश के किसी भी हिस्से में, राज्य के किसी भी अधिकारी के आदेश से की जाने वाली इंटरनेट की बंदी अस्थायी होनी चाहिए और इसे समानता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। गत सप्ताह अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी और कारोबार-व्यापार करने की आजादी को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षण प्राप्त है। उसने यह भी कहा कि इंटरनेट इन अधिकारों के इस्तेमाल का एक अहम जरिया है। अतीत में केरल उच्च न्यायालय ने भी यह घोषणा की थी कि शिक्षा के अधिकार और निजता के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए इंटरनेट तक पहुंच अनिवार्य है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब इस बात के पर्याप्त न्यायिक दृष्टांत मौजूद हैं जिनसे यह संकेत मिलता है कि इंटरनेट तक पहुंच को कम करना या समाप्त करना मूलभूत अधिकारों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने वाला है और इसलिए इस मामले में भी राज्य पर उचित सीमाएं लागू होनी चाहिए। भारत में ऐसे अधिकार संपूर्ण नहीं हैं और कड़े संवैधानिक मानकों में अनुरूप ही उनमें कटौती की जा सकती है।
अदालत का यह निर्णय कश्मीर में महीनों से चली आ रही इंटरनेट की सरकारी बंदी के संदर्भ में आया है। खासतौर पर मोबाइल इंटरनेट की बंदी को लेकर। इससे संपूर्ण जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में संचार बाधित हुआ, लोगों की आजीविका तो प्रभावित हुई, परिवारों के सदस्य भी एक दूसरे से दूर रहने को विवश हुए। यह बंदी अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद लागू हुई थी। उस वक्त बड़ी तादाद में राज्य के शीर्ष राजनेताओं को बंदी भी बनया गया था। दुर्भाग्यवश अदालत ने कश्मीर में केंद्र सरकार के कदमों को लेकर पर्याप्त तेजी नहीं दिखाई। अभी भी उसने घाटी में उन लोगों को पूरी राहत नहीं दी है जो गत वर्ष चार अगस्त से अपने अधिकारों से वंचित है।
अदालत का यह निर्णय कश्मीर में महीनों से चली आ रही इंटरनेट की सरकारी बंदी के संदर्भ में आया है। खासतौर पर मोबाइल इंटरनेट की बंदी को लेकर। इससे संपूर्ण जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में संचार बाधित हुआ, लोगों की आजीविका तो प्रभावित हुई, परिवारों के सदस्य भी एक दूसरे से दूर रहने को विवश हुए। यह बंदी अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद लागू हुई थी। उस वक्त बड़ी तादाद में राज्य के शीर्ष राजनेताओं को बंदी भी बनया गया था। दुर्भाग्यवश अदालत ने कश्मीर में केंद्र सरकार के कदमों को लेकर पर्याप्त तेजी नहीं दिखाई। अभी भी उसने घाटी में उन लोगों को पूरी राहत नहीं दी है जो गत वर्ष चार अगस्त से अपने अधिकारों से वंचित है।
