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पूर्वी घाट के दूरदराज के गांवों में जनजातीय समुदायों के पास अब एक साधारण जल व्यवस्था के कारण चौबीसों घंटे पानी रहता है जिसके लिए बिजली की जरूरत नहीं होती है। गोंडीपाकालु आंध्र प्रदेश केे पूर्वी घाट का एक सुदूूूर आदिवासी गांव है। इस दुर्गम और पर्वतीय इलाके की वनाजाक्षी और कई अन्य लडकियां पास की जलधाराओं से पानी लाने के लिए हर दिन पहाडियों की चढ़ाई करने के लिए मजबूर थीं। ये रास्ते बारिश के दौरान बहुत फिसलन भरे हो जाया करते थे। लेकिन अब, नर्सीपटनम में स्थित विशाखा जिला नव निर्माण समिति की बुद्धिमानी केे कारण इस क्षेत्र की विशेष भौगोलिक स्थिति का उपयोग जलापूर्ति की प्रणाली निर्माण करने में किया गया है और इसलिए अब ये लडकियां पुन: अपने विद्यालयों में पढ़ाई के लिए जाती है। यह प्रणाली गुरूत्वाकर्षण के सरल सिद्धांत पर कार्य करती है। यहां, स्त्रोत से पानी को तीन चैम्बर वाले टैंक में भेजा जाता है, जहां रेत, बजरी और कंकड की परतों वाली निस्पंदन प्रणाली का उपयोग करके इसे फिल्टर किया जाता है। पाइपों का उपयोग करके इन टैंकों से क्षेत्र के विभिन्न भागों में लगाए स्टैंडपोस्ट या नलों से पानी की आपूर्ति की जाती है। औसतन दस घरों के लिए एक स्टैंडपोस्ट होता है। ये पाइप स्त्रोत से स्टैंडपोस्ट तक दो से ढाई किलोमीटर तक की दूरी तक जाते है। चिंतपल्ली मंडल के एक गांव पाकाबू में, साठ घरों के लिए सात स्टैंडपोस्ट है। इसके अलावा, इनमें से प्रत्येक स्टैंडपोस्ट में अपवाह में जल को अवशोषित करने के लिए सोख्ता गड्डों का उपयोग किया जाता है। यह जल अपूर्ति प्रणाली अद्वितीय है क्योंकि इसमें बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। इस सरल प्रणाली ने सुदूर आदिवासी गांवों में चौबीसों घंटे पानी की आपूर्ति करने मेे मदद की है। इन क्षेत्रों में झरने पहाडियों के शीर्ष पर पाये जाते है। आमतौर पर, महिलांए स्त्रोत बिंदु तक जाती थीं और पानी लाती थीं, वहां कपडे धोती थीं, स्नान करती थीं, जिससे स्त्रोत पर ही जल प्रदूषित हो जाया करता था चूंकि ये झरने पहाडियों के शीर्ष पर स्थित है और समुदाय नीचे की और रहते हैं, इसलिए वीजेएनएनएस ने नीचे रहने वाले लोगों के लिए पानी लाने के लिए गुरूत्वाकर्षण की सरल अवधारणा का उपयोग करने का फैसला किया। वीजेएनएनएस ने तीन मंडलों- चिंतपल्ली, जीके वीधी और कोयरू में पचास जल प्रणालियों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। इनमें से प्रत्येक इकाई का निर्माण श्रमदान और ग्राम निधि की गांधीवादी अवधारणाओं के अनुरूप किया गया था, जहां समुदाय के पुरूष और महिलाएं दोनों निर्माण और रखरखाव में सक्रिय रूप से शामिल हैंं। केवल कुशल राजमिस्त्री को ही मजदूरी का भुगतान किया जाता है। इन इकाईयों के रख-रखावें के लिए समुदाय के जल समितियों का गठन किया गया है। समिति के सदस्य वी.कोडम्मा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह समिति महीने में एक बार बैठक कर स्वच्छता और स्वास्थ्य कारिता प्रथाओं के साथ-साथ रखरखाव के मुद्दों के लिए हर महिने प्रति घर दस रूपए एकत्र करती है। समिति का स्थानीय डाकघर में बचत खाता है।
