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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻ {सुबोध खरे-संचालक बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}
created Feb 13th 2020, 13:22 by DeendayalVishwakarma
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जापान में करीब सौ वर्ष पहले एक छोटे से राज्य पर पड़ोस के बड़े राजा ने हमला बोल दिया हमलावर राजा बड़ा है। आक्रामक बहुत शक्तिशाली है। कोई दस गुनी ताकत है उसके पास और राज्य छोटा है जिस पर हमला हुआ है बहुत गरीब है, न सैनिक हैं, न युद्ध का सामान है, न सामग्री है। सेनापति घबराकर बोला कि मेरी सामर्थ्य के बाहर है कि मैं युद्ध पर कैसे जाऊं, यह जानते हुए कि अपने सैनिकों की हत्या करानी है। और हार निश्चित है। मैं इनकार करता हूं, मुझे क्षमा कर दें। मैं इस युद्ध में नहीं जा सकूगां। कोई मौका ही नहीं है जीतने का। दस गुने सिपाही हैं उसके पास। दस गुनी युद्ध की सामग्री है। आधूनिक उपाय हैं और हमारे पास कुछ भी नहीं हैं। हार निश्चित है, इसलिए हार ही जाना उचित है। व्यर्थ लोगों का सर कटवाने से क्या प्रयोजन है, राजा भी घबाराया, वह जानता था कि बात सच है, सेनापति को कायर कहना उचित नहीं है। उसने युद्ध और लड़े हैं। आज पहली दफा इनकार कर रहा है और इनकार करने में कायरता नहीं काम कर रही है सीधी बात है। साफ गणित जैसी बात है, दो और दो चार जैसी बात है। हार निश्चिति है। लेकिन राजा का मन नहीं मानता कि बिना हारे और हार जाएं। वह रातभर बेचैन रहा है। सुबह उसने अपने वजीर को पूछा है, क्या कर रहे हैं, 'दुश्मन रोज आगे बढ़ते आ रहे है? उस वजीर ने कहा, मैं एक फकीर को जानता हूं। जब भी मेरे जीवन में कोई उलझन आयी है, मैं उसी के पास गया हूं, आज तक बिना सुझाव के वापस नहीं लौटा। सुबह है, आप चले चलें, और पूछ लें उससे। वे फकीर के दरवाजे पर पहुंच गए है, सेनापति भी साथ है। फकीर देखते ही हंसने लगा। उसने कहा, छोड़ो उस सेनापति को जो जाने के पहले कहता है कि हार जाना निश्चित हे, उसके जीत की तो काेई संभावना नहीं रह गयी। मैं चला जाता हूं सेनापति की जगह सेनाओं को लेकर। राजा और भी डरा सेनापति अनुभवी है। अनेक युद्धों में लड़ा और जीता है। यह फकीर जो तलवार पकड़ना भी नहीं जानता है लेकिन फकीर ने कहा बेफिक्र रहो, आठ-दस दिन के भीतर जीतकर वापस लौट आयेंगे। फकीर सेनाओं को लेकर रवाना हो पड़ा और उसे नदी के पास पहुंच गये जिसके उस तरफ दुश्मन का डेरा था।
