Text Practice Mode
बंसोड टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा, छिन्दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्यू बैच प्रांरभ
created Feb 14th 2020, 07:13 by SARITA WAXER
0
395 words
16 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
देश में निगाहें अब शाहीन बाग पर कम और सुप्रीम कोर्ट पर ज्यादा टिकी हैं, तो यह जितना स्वाभाविक, उतना ही उचित है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में शाहीन बाग के जाम को लेकर सुनवाई थी, जिसमें फिर एक बार कोर्ट ने पूरे संयम और समझदारी का परिचय दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस देकर जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 17 फरवरी को करने का फैसला किया है। कोर्ट किसी तरह की अतिरिक्त जल्दबाजी में नहीं है, वैसे भी कानून की अपनी गति और प्रक्रिया होती है, जिसकी पालना सुनिश्चित करना जरूरी है। एक सप्ताह बाद सुनवाई का अर्थ यह भी हो सकता है कि अदालत शायद सरकार को समाधान के लिए और समय देना चाहती है।
बहरहाल, शाहीन बाग के जाम पर कोर्ट ने भले ही फैसला न सुनाया हो, लेकिन कुछ संकेत उसने ऐसे दे दिए हैं, जो सही दिशा में उम्मीद जगाते हैं। पहली बात तो कोर्ट ने यह जतला दिया है कि जनजीवन बाधित करते हुए कहीं भी धरना देने की प्रवृत्ति सही नहीं है। एक वकील ने प्रदर्शन जारी रखने के अधिकार का जिक्र किया था, इसके जवाब में न्यायमूर्ति कौल ने स्पष्ट कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह धरना-प्रदर्शन करना उचित नहीं है। किसी को भी धरना-प्रदर्शन करने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि धरना-प्रदर्शन से आम जनता को किसी तरह की कोई समस्या न हो। कोर्ट ने यह भी कह दिया कि धरना-प्रदर्शन एक निर्धारित क्षेत्र में ही किया जाना चाहिए।
धरना-प्रदर्शन के प्रति पहले भी हमारी अदालतों का यही आकलन रहा है, इसमें कोई आश्चार्य नहीं। विरोध-प्रदर्शन से आम लोगों की परेशानी और सार्वजनिक संपत्ति को होने वाला नुकसान किसी भी पैमाने पर सही नहीं ठहराया जा सकता। आंदोलन या किसी भी तरह की मांग का एक लोकतांत्रिक तरीका है, जिसकी पक्षधर देश की अदालतें हमेशा से रही हैं। हालांकि आंदोलनकारियों की सोच समय के साथ बदल चुकी है और सरकारें भी पहले की तरह लोक-कल्याणकारी नहीं रहीं, तो ज्यादातर लोग मानने लगे हैं कि एकांत में कहीं पारंपरिक धरना देने पर सरकार गौर नहीं करेगी। सरकार का ध्यान खींचने के लिए ही लोग सड़कों पर उतरते हैं और शाहीन बाग में ऐसा ही हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 50 दिन से ज्यादा इंतजार किया है, कुछ दिन और इंतजार कर लीजिए।
बहरहाल, शाहीन बाग के जाम पर कोर्ट ने भले ही फैसला न सुनाया हो, लेकिन कुछ संकेत उसने ऐसे दे दिए हैं, जो सही दिशा में उम्मीद जगाते हैं। पहली बात तो कोर्ट ने यह जतला दिया है कि जनजीवन बाधित करते हुए कहीं भी धरना देने की प्रवृत्ति सही नहीं है। एक वकील ने प्रदर्शन जारी रखने के अधिकार का जिक्र किया था, इसके जवाब में न्यायमूर्ति कौल ने स्पष्ट कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह धरना-प्रदर्शन करना उचित नहीं है। किसी को भी धरना-प्रदर्शन करने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि धरना-प्रदर्शन से आम जनता को किसी तरह की कोई समस्या न हो। कोर्ट ने यह भी कह दिया कि धरना-प्रदर्शन एक निर्धारित क्षेत्र में ही किया जाना चाहिए।
धरना-प्रदर्शन के प्रति पहले भी हमारी अदालतों का यही आकलन रहा है, इसमें कोई आश्चार्य नहीं। विरोध-प्रदर्शन से आम लोगों की परेशानी और सार्वजनिक संपत्ति को होने वाला नुकसान किसी भी पैमाने पर सही नहीं ठहराया जा सकता। आंदोलन या किसी भी तरह की मांग का एक लोकतांत्रिक तरीका है, जिसकी पक्षधर देश की अदालतें हमेशा से रही हैं। हालांकि आंदोलनकारियों की सोच समय के साथ बदल चुकी है और सरकारें भी पहले की तरह लोक-कल्याणकारी नहीं रहीं, तो ज्यादातर लोग मानने लगे हैं कि एकांत में कहीं पारंपरिक धरना देने पर सरकार गौर नहीं करेगी। सरकार का ध्यान खींचने के लिए ही लोग सड़कों पर उतरते हैं और शाहीन बाग में ऐसा ही हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 50 दिन से ज्यादा इंतजार किया है, कुछ दिन और इंतजार कर लीजिए।
