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गरीबों की परबाह ने यह मुकाम दिलाया
created May 14th 2020, 16:21 by 7268004154
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				एक समय जिंदगी की आस छोड़ चुकी नाकामें ने महज 31 साल में स्वास्थ क्षेत्र में बेमिसाल नेतृत्व का परिचय दिया है। पिछले दिनों उन्हे अनसंग हीरों आवर्ड से सम्मानित किया गया। तब उन्होंने कहा था -जमीनी चैपिंयस के बिना कोई जंग नही जीती जा सकती। 
गहरे दर्द के क्षणों में कई बार हम अपने ईश्वर से शिकायत पाल बैठते है। कि उसने बड़ी जुल्म ठाया है मगर वह कहा आता है। जवाब देने उसकी प्रकृति का चक्र अपनी गति से धूमता रहता हैा सात साल की एक मासूम को असह्य दर्द से छटपटाते देख किकीस भी इंसान के भईतर ईश्वर से शिकायत के सिवा और क्या भाव पैदा होगा?
रोज मेैरी नाकामे तीसरी कक्षा में थी, जब एक दिन नाक से खून बहने लगा था वह बेहोश होकर सड़क पर गिर पडी पुलिस उठाकर घर पहूंचा गई थी मगर जिन घरों के लिए यही तय करना मुश्किल हो कि वे बच्चेो के भोजन पढाई-लिखाई या उनके इलाज में किसि चुनें, उनके बारे में कहने को बहुत कुछ रह भी नही जाताी फिर युगाड़ा की तो 67 फीसदी आबादी का यही दर्द है।
बैसे भी, नाकामे जिस समाज में पली-बढ़ी बह जेव से ही नहीं. जेहनियत से भी काफी कंगाल था। उनमें बेटियों की पीड़ा प्राय: बेटों की चाहत के आगे कही नही ठहरती। फिर जिस देश के बाशिदों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं ही मुहाल हो, उनके् लिए विषेशज्ञ चिकित्सा सेवा तक पहुंचना पहाड़ तोड़ने के बराबर ही था।
नाकामे की हालसात बिगड़ने लगी थी, अंत्त परिवार ने दोस्तों परिचितों की मदद ली और एक डॉक्टर ने बताया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है और ऑपरेशन के अलावा कोई दूसरा चारा नही। लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह थि कि सर्जन के पास ब्रेन ऑपरेशन की कोई तजुर्बा नहीं था। उसने मरीज के माता-पिता को साफ-साफ कह दिया कि इस प्रक्रिया में आपकी बेटी की जान जा सकती है।
			
			
	        गहरे दर्द के क्षणों में कई बार हम अपने ईश्वर से शिकायत पाल बैठते है। कि उसने बड़ी जुल्म ठाया है मगर वह कहा आता है। जवाब देने उसकी प्रकृति का चक्र अपनी गति से धूमता रहता हैा सात साल की एक मासूम को असह्य दर्द से छटपटाते देख किकीस भी इंसान के भईतर ईश्वर से शिकायत के सिवा और क्या भाव पैदा होगा?
रोज मेैरी नाकामे तीसरी कक्षा में थी, जब एक दिन नाक से खून बहने लगा था वह बेहोश होकर सड़क पर गिर पडी पुलिस उठाकर घर पहूंचा गई थी मगर जिन घरों के लिए यही तय करना मुश्किल हो कि वे बच्चेो के भोजन पढाई-लिखाई या उनके इलाज में किसि चुनें, उनके बारे में कहने को बहुत कुछ रह भी नही जाताी फिर युगाड़ा की तो 67 फीसदी आबादी का यही दर्द है।
बैसे भी, नाकामे जिस समाज में पली-बढ़ी बह जेव से ही नहीं. जेहनियत से भी काफी कंगाल था। उनमें बेटियों की पीड़ा प्राय: बेटों की चाहत के आगे कही नही ठहरती। फिर जिस देश के बाशिदों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं ही मुहाल हो, उनके् लिए विषेशज्ञ चिकित्सा सेवा तक पहुंचना पहाड़ तोड़ने के बराबर ही था।
नाकामे की हालसात बिगड़ने लगी थी, अंत्त परिवार ने दोस्तों परिचितों की मदद ली और एक डॉक्टर ने बताया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है और ऑपरेशन के अलावा कोई दूसरा चारा नही। लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह थि कि सर्जन के पास ब्रेन ऑपरेशन की कोई तजुर्बा नहीं था। उसने मरीज के माता-पिता को साफ-साफ कह दिया कि इस प्रक्रिया में आपकी बेटी की जान जा सकती है।
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