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साई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Sep 18th 2020, 07:46 by lucky shrivatri


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पूर्वी घाट के दूरदराज के गांवो में जनजातीय समुदायों के पास अब एक साधारण जल व्‍यवस्‍था के कारण चौबीसों घंटे पानी रहता है जिसके लिए बिजली की जरूरत नहीं होती है। गोंडीपाकालु आंध्र प्रदेश पूर्वी घाट का एक सुदूर आदिवासी गांव है। इस दुर्गम और पर्वतीय इलाके की वनाजाक्षी और कई अन्‍य लड़कियां पास की जलधाराओं से पानी लाने के लिए हर दिन पहाडि़यों की चढ़ाई करने के लिए मजबूर थीं। ये रास्‍ते बारिश के दौरान रास्‍ते फिसलन भरे हो जाया करते थी। लेकिन अब, नर्सीपटनम में स्थित विशाखा जिला नव निर्माण समिति की बुद्धिमानी के कारण इस क्षेत्र की विशेष भौगोलिक स्थिति का उपयोग जलापूर्ति की प्रणाली निर्माण करने में किया गया है और इसलिए अब ये लड़कियां पुन: अपने विद्यालयों में पढ़ाई के लिए जा पाती हैं। यह प्रणाली गुरूत्‍वाकर्षण के सरल सिद्धांत पर कार्य करती है। यहां, स्‍त्रोत से पानी को तीन चैम्‍बर वाले विवरण टैंक में भेजा जाता है, जहां रेत, बजरी और कंकड की परतों वाली निस्‍पंदन प्रणाली का उपयोग करके इसे फिल्‍टर किया जाता है। पाइपों का उपयोग करके इन टैंकों से क्षेत्र के विभिन्‍न भागों में गलाए स्‍टैंडपोस्‍ट या नलों से पानी की जाती हैं। औसतन, इस घरों के लिए एक स्‍टैंडपोस्‍ट होता है। ये पाइप स्‍त्रोत से स्‍टैंडपोस्‍ट तक दो से ढाई किलोमीटर तक की दूरी तक जाते हैं। चिंतपल्‍ली मंडल के एक गांव पाकाबू में, साठ घरों के लिए सात स्‍टैंडपोस्‍ट हैं। इसके अलावा, इनमें से प्रत्‍येक स्‍टैंडपोस्‍ट में अपवाह में जल को अवशोषित करने के लिए सोख्‍ता गड्ढों का उपयोग किया जाता हैं। यह जल प्रणाली अद्वितीय है क्‍योंकि इसमें बिजली की आवश्‍यकता नहीं होती है।  
इस सरल प्रणाली ने सुदूर आदिवासी गावों में चौबीस घंटे पानी की करने में मदद की। इन क्षेत्रों में झरने पहाडियों के शीर्ष पर पाए जाते हैं। आमतौर पर, महिलाएं स्‍त्रोत बिंदु तक जाती थी और पानी लाती थीं, स्‍नान करती थी, जिससे स्‍त्रोत पर ही जल प्रदूषित हो जाया करता था। चूंकि ये झरने पहाडियों के शीर्ष पर स्थित है और समुदाय नीचे की ओर रहते हैं, इसलिए बीजेएनएनएस ने नीचे रहने वाले लोगों के लिए पानी के लाने के लिए गुरूत्‍वाकर्षण की सरल अवधारणा का उपयोग करने का फैसला किया। बीजेएनएनएस ने तीन मंडलों- चिन्‍तपल्‍ली, जीके वीधी और कोयरू में पचास जल प्रणालियों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। इनमें से प्रत्‍येक इकाई का निर्माण श्रमदान और ग्राम की गांधीवादी अवधारणाओं के अनुरूप किया गया था, जहां समुदाय के पुरूष और महिलाएं दोनों निर्माण और रखरखाव में सक्रिय रूप से शामिल हैं। केवल कुशल राजमिस्‍त्री को ही मजदूरी का भुगतान किया जाता है। इन इकाईयों के रख-रखावे के लिये समुदाय में जल समिति का गठन किया गया है। समिति के सदस्‍य वी. कोडम्‍मा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह समिति महीने में एक बार बैठक कर स्‍वच्‍छता और स्‍वास्‍थ्‍य कारिता प्रथाओं के साथ-साथ रख-रखाव के मुद्दों के लिए हर महीने प्रति घर दस रूपए एकत्रित करती है। समिति का स्‍थानीय डाकघर में बचत खाता हैं।

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