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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Sep 18th 2020, 10:59 by Vikram Thakre


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एक बार की बात है कि दो मित्र थे और वे किसी जूते बनाने की कंपनी मे जॉब करते थे। कंपनी में जूते बनते थे और उन दोनों का काम था मार्केट में जाकर जूते बेचना। एक बार कंपनी के मालिक ने उनको किसी एक ऐसे गांव मे जूते बेचने भेजा जहां सभी लोग नंगे पैर रहते थे कोई चप्‍पल या जूते पहनता ही नहीं था। पहला मित्र गांव में जाता है और वहां के लोगों को देखकर बड़ा परेशान हो जाता है कि यहां तो कोई जूते ही नहीं पहनता तो यहां मैं अपने जूते कैसे बेचूंगा, ये सोचकर वो वापस जाता है। फिर दूसरा मित्र गांव  में जाता है और ये देखकर काफी खुश होता है कि यहां तो कोई जूते ही नहीं पहनता, अब तो मैं अपने सारे जूते यहां बेच सकता हूं यहां तो मेरे बहुत सारे ग्राहक हैं। यही फर्क होता है सकारात्‍मक और नकारात्‍मक सोच में। दुनिया सभी के लिए समान है और हर जगह अच्‍छा करने की संभावनाएं हैं परन्‍तु नकारात्‍मक सोच का व्‍यक्ति रास्‍तों को देखकर भी मुंह मोड़ लेता है और सकारात्‍मक सोच वाला इंसान कठिन परिस्थितियों में भी राह बना लेता है। दुनिया मे कुछ भी असंभव नहीं है बस सोच हमेशा सकारात्‍मक होनी चाहिए। सकारात्‍मक सोच रखने वाले लोग चांद पर भी पहुंच जाते हैं और नकारात्‍मक सोच वाले लोग जीवन भर कूप मंडूक बने रहते हैं।

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