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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 23rd 2020, 06:24 by rajni shrivatri
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मोहित को बचपन से ही घूमने फिरने का बहुत शौक रहा है। नई जगह को देखना और नए लोगों से मिलना उसकी आदत में शुमार था। यह उसका सबसे पंसदीदा शौक बन गया था। जिंदगी पूरी तरह से उसके हाथों में थी और वह जिंदगी को पूरी तरह से जी रहा था। लेकिन फिर एक झटके ने अचानक उसकी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी। मोहित को मैनिंजाइटिस हो गया जिसकी वजह से उसका बाया कान, किडनी और घुटनों के नीचे दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। उसके परिवार वालों का रो रो कर बुरा हाल था। वे उस दिन को कोस रहे थे जब मोहित ने लद्दाख जाने का फैसला किया था। काफी दिनों तक कोमा में रहने के बाद जब मोहित को होश आया तो उसके दोनों पैर गायब थे। जो आदमी अपने पैरों से दुनिया नापने की ख्वाहिश रखता हो उसके पैर ही नहीं रहे तो ऐसी जिंदगी का फिर कोई मतलब नहीं रह जाता है।
मोहित की जिंदगी कुछ ही दिनों में बदल गई। मोहित अब डिप्रेशन में चला गया और हर वक्त अपने अधूरे सपनों के बारे में सोचता रहता था। एक दिन अचानक उसने तय किया कि ऐसे कब तक चलेगा। उसने वापस से जीवन को नए सिरे से जीने का फैसला किया। डॉक्टरों की मदद से उसने प्रोस्थेटिक पैर लगवाएं और फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना सीख लिया। जब भी कोई उससे पूछता तो वह केवल एक ही बात कहता- जिंदगी में जो होता है अच्छे के लिए होता है। मेरे साथ यह होना भी जरूर था क्योंकि मेरा सपना था कि मैं दुनिया घूमू और स्त्रो ग्लाइडिंग का अपना शौक पूरा करू। लेकिन मेरे पैर जवाब दे देते थे, खासकर ज्यादा ठंड में अकड़ जाते थे। खून जमने लगता था लेकिन अब मेरे पैर रबर के हैं। मैं जितना देर तक चाहूं बर्फ में रह सकता हूं और सिर्फ यही नहीं अब मुझे अपने जुतों के साहज की भी चिंता नहीं। अपने दोनों पैर खोने के बाद भी मोहित एक जिंदादिल स्त्रोग्लाइडर के साथ-साथ एक अच्छा स्पोर्ट शिक्षक बना जो देश के विकलांग लोगों की मदद करता था।
शिक्षा- अगर आप में आत्मविश्वास है तो बड़ी से बड़ी समस्या भी मामूली लगती है।
मोहित की जिंदगी कुछ ही दिनों में बदल गई। मोहित अब डिप्रेशन में चला गया और हर वक्त अपने अधूरे सपनों के बारे में सोचता रहता था। एक दिन अचानक उसने तय किया कि ऐसे कब तक चलेगा। उसने वापस से जीवन को नए सिरे से जीने का फैसला किया। डॉक्टरों की मदद से उसने प्रोस्थेटिक पैर लगवाएं और फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना सीख लिया। जब भी कोई उससे पूछता तो वह केवल एक ही बात कहता- जिंदगी में जो होता है अच्छे के लिए होता है। मेरे साथ यह होना भी जरूर था क्योंकि मेरा सपना था कि मैं दुनिया घूमू और स्त्रो ग्लाइडिंग का अपना शौक पूरा करू। लेकिन मेरे पैर जवाब दे देते थे, खासकर ज्यादा ठंड में अकड़ जाते थे। खून जमने लगता था लेकिन अब मेरे पैर रबर के हैं। मैं जितना देर तक चाहूं बर्फ में रह सकता हूं और सिर्फ यही नहीं अब मुझे अपने जुतों के साहज की भी चिंता नहीं। अपने दोनों पैर खोने के बाद भी मोहित एक जिंदादिल स्त्रोग्लाइडर के साथ-साथ एक अच्छा स्पोर्ट शिक्षक बना जो देश के विकलांग लोगों की मदद करता था।
शिक्षा- अगर आप में आत्मविश्वास है तो बड़ी से बड़ी समस्या भी मामूली लगती है।
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