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BHU MOCK TEST HINDI REMINGTON GAIL (SURYA JMT)

created Nov 28th 2020, 01:15 by SURYA JMT


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इस अध्‍ययन के दौरान सामाख्याली में 11 प्रजातियों के पक्षियों के 47 कंकाल मिले है, जबकि हरपनहल्ली के पास तीन प्रजातियों के सात पक्षी कंकाल पाए गए हैं। पवन, अक्षय उर्जा का एक प्रमुख स्रोत मानी जाती है। लेकिन, विंड टरबाइन आसपास के क्षेत्रों में पक्षी जीवन के लिए खतरा बनकर उभर रही है। अध्ययन में पता चला कि विंड टरबाइन के ब्लेैड से टकराने से पक्षियों की मौत हो रही है। गुजरात के कच्छ में स्थित सामाख्याली और कर्नाटक के हरपनहल्लीे और दावणगेरे में विंड टरबाइन संयंत्रों के आसपास पक्षियों की मौतों के कारणों की जांच करने पर शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। चार प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों से घिरा यह क्षेत्र पक्षियों की विविध प्रजातियों का आवास है, जहां सर्दियों में आर्कटिक, यूरोप और मध्य एशिया से प्रवासी पक्षी भी आते हैं। सामाख्याली पाए गए पक्षी कंकालों में से 43 कंकाल प्रवासी पक्षियों के आगमन के मौसम में मिले हैं। इनमें से अधिकतर कंकाल टरबाइन के 20 मीटर के दायरे में पाए गए हैं। टरबाइन से टकराने के कारण कबूतर की प्रजाति ढोर फाख्तान की मौतें सबसे अधिक हुई हैं। हौसिल और कठसारंग जैसे दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के शव भी शोधकर्ताओं को मिले हैं। अध्ययन में शामिल पक्षी विज्ञानी डॉ रमेश कुमार सेल्वाराज के अनुसार आसपास के घास के मैदान चील और बाज जैसे शिकारी पक्षियों की शरणगाह हैं। इस कारण इन पक्षियों के विंड टरबाइन के ब्लेड से टकराने का खतर बना रहता हैं। शिकारी पक्षियों की उम्र लंबी होती है और ये बहुत कम अंडे देते हैं, इनकी मौते अधिक होने से इन पक्षी प्रजातियों पर लुप्त होने के संकट में वृद्धि हो सकती हैं। अध्ययन क्षेत्र पर्णपाती वनों के करीब हैं, जहां स्थानीय पक्षियों की 115 प्रजातियां पायी जाती हैं। वर्ष 2014-15 के दौरान विंड टरबाइन क्षेत्रों में नौ चरणों में अध्ययन किया गया। यहां 60 मीटर के दायरे में सात पक्षी कंकाल मिले है, जिसमें से चार कंकाल प्रवासी पक्षियों के आगमन के मौसम में पाए गए है। इस अध्यंयन से प्रति टरबाइन औसतन 0.5 पक्षियों के मारे जाने का पता चलता है। यह सीमित डेटा हो सकता है क्यों कि पक्षियों के विंड टरबाइन के ब्लेड से टकराने से होने वाली मौते 40 दिन के अंतराल पर दर्ज की गई हैं। नियमित निगरानी से पक्षियों की मौतों का डेटा अधिक हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पक्षियों की नियमित निगरानी और पवन-चक्की लगाते समय पक्षियों के आवास को ध्यान में रखते हुए स्थान का चयन करना इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है। ऐसा करने से पक्षियों को विंड टरबाइन के खतरे से बचाया जा सकता हैं। शोधकर्ताओं में रमेश कुमार सेल्वाराज (बॉम्‍बे नेचुरल हिस्ट्री  सोसायटी, मुंबई), अनूप वी., अरूण पी.आर., राजा जयपाल, और मोहम्‍मद समसूर अली (सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र कोयंबत्तूर) शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
(अगर किसी का बीएचयू का हिन्दी का टाइपिंग टेस्ट हो तो, इस इमेल पर संर्पक करें [email protected] )
 

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