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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Nov 28th 2020, 08:50 by SubodhKhare1340667


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आदिकाल से ही मानव और पर्यावरण का गहरा रिश्‍ता रहा है। मानव जाति के विकास क्रम में आवश्‍यकताएं भी बढ़ती चली गईं और सतत विकास ने जरूरतों को और बढ़ाया। सबसे ज्‍यादा बदलाव पिछली चार-पांच शताब्दियों में आया, जब विज्ञान के उपयोग से नए आविष्‍यकार होने लगे और फिर औद्योगिक क्रांति ने तो मानव जीवन की दिशा ही बदल डाली। लेकिन इन्हीं उपलब्धियों के बीच सबसे घातक काम जो शुरू हुआ, वह था प्रकृति के साथ खिलवाड़। विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का जो सि‍लसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। यही कारण है कि आज हम प्रकृति के कोप का शिकार बनते जा रहे हैं। पूरी दुनिया इस वक्‍त हर तरह के प्रदूषण की मार झेल रही है। धरती का आज सबसे बड़ा और गंभीर संकट जलवायु का है। धरती का बढ़ता तापमान इसी का नतीजा है। ऐसे में आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि हम वर्तमान में अपना जीवन सुंदर बनाएं और भविष्‍य के लिए भी एक सक्षम जीवन बनाने का गंभीरता के साथ प्रयास करें। यह सही है कि अभाव हमेशा रहेंगे, लेकिन इन अभावों के लिए जिम्‍मेदार कारणों को दूर करना और उसे पुन: सही रूप में लाना ही संवहनीयता है। हालांकि यह बड़ी चुनौती है, मगर इस चुनौती से ही मानव का विकास जुड़ा हुआ है। यदि मानव विकसित होगा तो एक परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्‍ट्र और राष्‍ट्रों से विश्‍व विकसित होगा। पर्यावरण संवहनीयता व्‍यक्तियों, समुदायों, देशों और अंतरराष्‍ट्रीय समुदायों को एक नए मार्ग पर ले जाने के लिए सबसे सुयोग्‍य साधन है।

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