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$|-|Y@M &HIVH@RE — HINDI TYPING

created Jan 13th 2021, 13:05 by 90SHYAMSHIVHARE


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एक समय की बात है स्‍वामी विवेकानंद अपने आश्रम में वेदों का पाठ कर रहे थे, तभी उनके पास चार ब्राह्मण आए वह बड़े व्‍याकुल थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह किसी प्रश्‍न का हल ढूंढने के लिए परिश्रम कर रहे हैं। चारों ब्राह्मण ने स्‍वामी जी को प्रणाम किया और कहा- स्‍वामी जी! हम बड़ी दुविधा में है, आपसे अपने समस्‍या का हल जानना चाहते हैं। हमारी जिज्ञासाओं को शांत करें। स्‍वामी जी ने आश्‍वासन दिया और जानना चाहा कैसी जिज्ञासा? कैसा प्रश्‍न है आपका? ब्राह्मण बोले महात्‍मा हम चारों ने वेद वेदांतों की शिक्षा ग्रहण की है। हम सभी समाज में अलग-अलग दिशाओं में घूम कर समाज को अपने ज्ञान से सुखी, संपन्‍न और समृद्ध देखना चाहते हैं। इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करें। स्‍वामी जी के मुख पर हल्‍की सी मुस्‍कान आई और उन्‍होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा- है ब्राह्मण! आप सभी यह सब लक्ष्‍य प्राप्‍त कर सकते हैं इसके लिए आपको मिलकर समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना होगा। ब्राह्मण देवता शिक्षा से हमारा लक्ष्‍य कैसे प्राप्‍त हो सकता है? स्‍वामी जी जिस प्रकार बगीचे में पौधे को लगाकर बाग को सुंदर बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा के द्वारा समाज का उत्‍थान संभव है। शिक्षा व्‍यक्ति में समझ पैदा करती है, उन्‍हें जीवन के लिए समृद्ध बनाती है। साधनों से संपन्‍न होने में शिक्षा मदद करती है, सभी अभाव को दूर करने का मार्ग शिक्षा दिखाती है। यह सभी प्राप्‍त होने पर व्‍यक्ति स्‍वयं समृद्ध हो जाता है। ब्राह्मण देवता को अब स्‍वामी विवेकानंद जी का विचार बड़े ही अच्‍छे ढंग से समझ चुका था। अब उन्‍होंने मिलकर प्रण लिया वह अपने शिक्षा का प्रचार- प्रसार समाज में करेंगे यही उनकी समाज सेवा होगी।

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