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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Jan 16th 2021, 04:12 by subodh khare
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पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों में अंतरधार्मिक विवाहों के मसले पर जिस तरह के उथल-पुथल मची है, उसमें यह आशंका खड़ी हो रही थी कि अगर दो बालिग अपनी पसंद और चुनाव से विवाह करना चाहते हैं तो उनका जीवन सहज कैसे रहे। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में कई ऐसे मामले सामने आए, जिनमें अलग-अलग धर्मों से संबंधित जोड़ों को लव जिहाद पर बने नए कानून के तहत पुलिस की ओर से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके समांतर एक अहम पहलू यह है कि अब तक अपनी पसंद से अगर कोई बालिग युवक और युवती विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करना चाहते हैं तो उनके नाम पर तीस दिन पहले सार्वजनिक तौर पर नोटिस जारी होती है, ताकि इस पर कोई आपत्ति दर्ज कर सके। इससे आमतौर पर वैसे युवा जोड़ों के सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी होती रही हैं, जिनकी पसंद में उनके अभिभावकों और समाज की सहमति शामिल नहीं होती है। जाति और धर्म की कसौटी पर अलग होने की स्थिति में अक्सर ऐसे जोड़ों को किन हालात का सामना करना पड़ता है, यह किसी से छिपा नहीं है।
अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मसले पर जो फैसला सुनाया है, उसके तहत दो बालिगों के चुनाव और निजता को अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। बुधवार को अदालत ने साफतौर पर कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी के तीस दिन पहले जरूरी तौर पर नोटिस देने का नियम अनिवार्य नहीं है और इसे वैकल्पिक बनाना चाहिए, इस तरह का नोटिस निजता का हनन है। सभी जानते हैं कि ऐसी स्थिति में पसंद, चुनाव और विवाह के लिए सहमति के बावजूद ऐसे जोड़ों पर किस तरह का सामाजिक दबाव पड़ता है। यह सीधे तौर पर अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के उनके अधिकार में भी दखल है। कहा जा सकता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाज और परिवार के दायरे से अलग अपनी पसंद से विवाह करने वाले बालिग युवाओं के हक में एक बेहद अहम फैसला दिया है।
अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मसले पर जो फैसला सुनाया है, उसके तहत दो बालिगों के चुनाव और निजता को अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। बुधवार को अदालत ने साफतौर पर कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी के तीस दिन पहले जरूरी तौर पर नोटिस देने का नियम अनिवार्य नहीं है और इसे वैकल्पिक बनाना चाहिए, इस तरह का नोटिस निजता का हनन है। सभी जानते हैं कि ऐसी स्थिति में पसंद, चुनाव और विवाह के लिए सहमति के बावजूद ऐसे जोड़ों पर किस तरह का सामाजिक दबाव पड़ता है। यह सीधे तौर पर अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के उनके अधिकार में भी दखल है। कहा जा सकता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाज और परिवार के दायरे से अलग अपनी पसंद से विवाह करने वाले बालिग युवाओं के हक में एक बेहद अहम फैसला दिया है।
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