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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Jan 18th 2021, 11:24 by SubodhKhare1340667


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भारत के लोगों में न्‍यायपालिका के प्रति गहरा भरोसा है। संविधान निर्माताओं ने भी स्‍वतंत्र न्‍यायपालिका बनाई। संविधान सभा में सर्वोच्‍च न्‍यायालय पर हुई बहस में एचवी पातस्‍कर ने कहा था कि ब्रिटेन में न्‍याय का प्रधान स्रोत सम्राट माना जाता है। हमारे देश में कोई सम्राट नहीं है। एक स्‍वतंत्र निकाय जरूरी है। उसे विशेष शक्तियां दी जानी चाहिए। भारत में न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका सहित सभी संवैधानिक संस्‍थाओं का स्रोत संविधान है। यहां न्‍यायपालिका को पूर्ण स्‍वतंत्रता है। तीनों संस्‍थाओं की अपनी सीमा और गरिमा है। संविधान निर्माताओं ने शक्ति पृथक्‍करण का प्रविधान है। संसद को विधि निर्माण और संविधान संशोधन के अधिकार है। न्‍यायपालिका को न्‍यायिक पुनर्विलोकन का भी अधिकार है। संविधान की कोई भी संस्‍था स्‍वायत्‍त नहीं है। सबके काम करने की मर्यादा है, लेकिन किसान आंदोलन को लेकर सर्वोच्‍च न्‍यायपीठ द्वारा तीन कृषि कानूनों को स्‍थगित करने का मसला विधि विशेषज्ञों के बीच बहस का विषय है। प्रधान न्‍यायाधीश ने कानून का क्रियान्‍वयन और कानूनों के स्‍थगन को अलग-अलग विषय बताया है।
    संविधान में संसद या विधानमंडल द्वारा पारित कानूनों के पुनर्विलोकन के अधिकार न्‍यायपालिका को है। अनुच्‍छेद-13 के अनुसार, भारत के राज्‍य क्षेत्र में प्रर्वितत सभी विधियां उस मात्रा तक शून्‍य होंगी जिस तक वह मूल अधिकारों वाले भाग के अधिकारों से असंगत है। इसी तरह संविधान के आज्ञामूलक प्रविधानों संविधान के मौलिक ढांचे का उल्‍लघंन करने वाले कानूनों का निरसन भी न्‍यायपालिका का अधिकार है। उसकी संवैधानिक वैधता की जांच करना न्‍यायपालिका का अधिकार है। किसी कानून के प्रथमदृष्‍टया असंवैधानिक पाए जाने पर कानून के प्रवर्तन को रोकने की बात सही हो सकती है, लेकिन कृषि कानून प्रथमदृष्‍टया भी असंवैधानिक नहीं पाए गए हैं। सर्वोच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा है, नि:संदेह किसी कानून के असंवैधानिक पाए जाने की स्थिति में न्‍यायालय उसे शून्‍य कर सकती है, लेकिन बिना तथ्‍यों के वह किसी विधि के प्रवर्तन को रोक नहीं सकती।

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