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created Feb 26th 2021, 05:13 by lucky shrivatri
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हिमाचल का नाम आए और चम्बा का जिक्र न हो तो कुछ अधूरा-सा लगता है। चम्बा को पहाड़ी संस्कृति और विरासत के सबसे प्राचीन प्रतीक के रूप में जाना जाता है। यह कभी पहाड़ी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। वर्तमान में यह दुनिया भर में अपने रमणीक मंदिरों के लिए जानी जाती है। इस जगह को करीब बारह सौ साल पहले राजा साहिल वर्मन ने अपनी पुत्री चंपावती के नाम पर स्थापित किया था। न जाने कितनी सदियां गुजरी गईं, पर चारों ओर से ऊंची-ऊंची पहाडि़यों से घिरी इस जगह ने अपनी प्राचीन संस्कृति ओर विरासत को अभी भी संरक्षित करके रखा है, जिसकी एक झलक के लिए दूर-दूर से सैलानी चम्बा पहुंचते हैं। चम्बा का नजदीकी एयरपोर्ट अमृतसर है जो चंबा से 240 किलोमीटर की दूरी पर है। अमृतसर से चंबा के लिए बस या टैक्सी आसानी से मिल जाती है। इस जगह पर कदम रखते ही आपको प्राचीन काल की अनेक निशानियां देखने को मिल जाएंगी। मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के लिए अपनी पहचान बना चुके इस नगर में पर्यटन स्थलों की भरमार है। इस जगह पर राजा साहिल वर्मन ने अपनी पुत्री को समर्पित एक मंदिर भी बनवाया था जिसे चम्पावती मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि चम्पावती ने अपने पिता को चम्बा नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है, पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है। चम्बा में रहते हुए चामुंडा देवी का दर्शन करना बिलकुल न भूलें। चामुंडा देवी को चम्बा की देवी कहा जाता है। इसी तरह लक्ष्मीनारायण मंदिर चंबा में स्थित सबसे विशाल ओर प्राचीन मंदिर है। चम्बा में स्थित सबसे विशाल और प्राचीन मंदिर है। चम्बा में रहते हुए कूंरा गांव भी जाया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान जब कौरवों ने पांडवो को वनवास दिया था, तो पांडवों ने माता कुंती के साथ इसी जगह पर दोपहर का भोजन किया था और उनके नाम पर ही इस गांव का नाम कुंतापुरी पड़ा था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे लोगों ने इसे कूंरा नाम दे दिया।
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