eng
competition

Text Practice Mode

अरविंद सोनी (सिवनी)

created Apr 24th 2021, 16:09 by अरविंद कुमार soni


1


Rating

175 words
0 completed
00:00
शास्‍त्री जी के नाम के साथ 'कर्मयोगी' विशेषण जोड़ना बिल्‍कुल उपयुक्‍त है, क्‍योंकि मुुझे तो उनका सारा जीवन ही कर्म से भरा हुआ मालूम पड़ता है। शास्‍त्री जी सामान्‍य परिवार से ऊपर उठकर देश के प्रधानमंत्री के जिस महत्‍वपूर्ण पद तक पहुँचेे, उसका रहस्‍य उनके कर्मयोगी होने में ही छिपा है। वे लोगों में से नहीं थे, जिन्‍हें जीवन का बना बनाया आसान रास्‍ता मिल जाता है। बल्कि वे उन लोगों में से थे, जिनको अपनी हथेली की लकीरों के बजाय अपने चिंतन और कर्म की शक्ति पर अधिक भरोसा होता है और वे क्रमश: अपने जीवन का रास्‍ता बनाते हुए आगे बढ़ते हैं। शास्‍त्री जी के लिए कर्म ही ईश्‍वर था और इसके प्रति वे बिना किसी फल की आशा किए संपूर्ण भाव से समर्पित रहते थे। यहॉं तक कि जब भी उन्‍हें फल की प्राप्ति  के अवसर मिले, तब भी उन्‍होंने उस ओर हमेशा उपेक्षित दृष्टि रखी। उनका जीवन-दर्शन 'गीता' के निष्‍काम कर्मयोगी का प्रतिरूप था। इसलिए मैं समझता हूँ कि उन्‍हें केवल कर्मयोगी के बजाय 'निष्‍काम कर्मयोगी' कहना कहीं अधिक उपयुक्‍त होगा।       

saving score / loading statistics ...