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मध्यप्रदेश जबलपुर हाईकोर्ट HINDI TYPING PRACTICE SHUBHAM BAXER 7987415987 Chhindwara m.p.
created Sep 4th 2021, 12:23 by shubham baxer
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अधिवक्ता।
प्रतिवादी क्र. 7, 8 एवं 9 की ओर से श्री मनोज तिवारी,
शासकीय अधिवक्ता।
इस आदेश के द्वारा प्रतिवादी क्र. 5 एवं 6 के लंबित आवेदनपत्र आदेश-7 नियम-11 सहपठित धारा 151 व्य.प्र.सं. (आई.ए.नं. 3) का निराकरण किया जा रहा है। आवेदन अनुसार वादीगण ने घोषणात्मक आज्ञप्ति/ क्षेत्राधिकार के लिये वाद का मूल्याकंन 5 करोड़ तथा स्थायी निषेधाज्ञा की सहायता के लिये मूल्यांकन 30,000/-रूपये कर क्रमशः निश्चित न्यायशुल्क 2000/-रूपये व मूल्य अनुसार न्यायशुल्क 3600/-रूपये अदा किया है। वादीगण का दावा न्यायालय फीस अधिनियम 1870 की धारा 7(4)(सी) के अंतर्गत आता है इस कारण दावे का मूल्याकंन वाद मूल्याकंन अधिनियम 1887 की धारा-8 के अनुसार न्यायालय फीस की संगणना के लिये अवधार्य मूल्य और अधिकारिता के प्रयोजन के लिये मूल्य एक ही होना चाहिये, जो कि वादीगण के द्वारा जानबूझकर नहीं किया है। आवेदन के अंत में यह भी आधार लिया गया है कि वादीगण ने स्थायी निषेधाज्ञा की सहायता के लिये 30,000/-रूपये मूल्याकंन किया है इस कारण वाद की सुनवायी के लिये न्यूनतम क्षेत्राधिकार का न्यायालय सक्षम हैं। वादीगण ने जानबूझकर प्रतिवादीगण के अपील के एक अधिकार को समाप्त करने के लिये घोषणात्मक सहायता हेतु बढ़ा-चढ़ाकर मूल्यांकन किया है जो कि अनुचित है। अतः आवेदनपत्र स्वीकार कर वादीगण को निर्देश दिया जाये कि वे अभिवचनों में आवश्यक संशोधन कर न्यूनतम क्षेत्राधिकार के न्यायालय में वाद प्रस्तुत करें। वादीगण ने अपने प्रतिउत्तर में प्रतिवादी क्र. 5 एवं 6 के द्वारा ली गई दोनों आपत्तियों को अस्वीकार करते हुये व्यक्त किया है कि वाद के मूल्यांकन के संबंध में वाद मूल्याकंन अधिनियम की धारा-8 के प्रावधान इस प्रकरण में आकर्षित नहीं होते। वादग्रस्त भूमि पर वादीगण का कब्जा है, उन्होंने घोषणात्मक आज्ञप्ति के लिये संपत्ति के बाजार मूल्य के अनुसार दावे का मूल्यांकन कर नियत न्यायशुल्क अदा किया है। साथ ही निषेधाज्ञा की सहायता हेतु उचित मूल्यांाकन कर मूलानुसार न्यायशुल्क अदा किया है जो सर्वथा विधिक प्रावधानों के अनुरूप है। आवेदनपत्र दुर्भावनापूर्वक प्रकरण को लंबा करने के आशय से प्रस्तुत किया गया है इस कारण निरस्त किया जाये। आवेदन पर विचार कर प्रकरण का अवलोकनकिया। यह सुस्थापित विधि है कि न्यायशुल्क से संबंधित आक्षेपित प्रश्न का अवधारण केवल वादपत्र में वर्णित अभिवचनोंके आधार पर होना चाहिये।
प्रतिवादी क्र. 7, 8 एवं 9 की ओर से श्री मनोज तिवारी,
शासकीय अधिवक्ता।
इस आदेश के द्वारा प्रतिवादी क्र. 5 एवं 6 के लंबित आवेदनपत्र आदेश-7 नियम-11 सहपठित धारा 151 व्य.प्र.सं. (आई.ए.नं. 3) का निराकरण किया जा रहा है। आवेदन अनुसार वादीगण ने घोषणात्मक आज्ञप्ति/ क्षेत्राधिकार के लिये वाद का मूल्याकंन 5 करोड़ तथा स्थायी निषेधाज्ञा की सहायता के लिये मूल्यांकन 30,000/-रूपये कर क्रमशः निश्चित न्यायशुल्क 2000/-रूपये व मूल्य अनुसार न्यायशुल्क 3600/-रूपये अदा किया है। वादीगण का दावा न्यायालय फीस अधिनियम 1870 की धारा 7(4)(सी) के अंतर्गत आता है इस कारण दावे का मूल्याकंन वाद मूल्याकंन अधिनियम 1887 की धारा-8 के अनुसार न्यायालय फीस की संगणना के लिये अवधार्य मूल्य और अधिकारिता के प्रयोजन के लिये मूल्य एक ही होना चाहिये, जो कि वादीगण के द्वारा जानबूझकर नहीं किया है। आवेदन के अंत में यह भी आधार लिया गया है कि वादीगण ने स्थायी निषेधाज्ञा की सहायता के लिये 30,000/-रूपये मूल्याकंन किया है इस कारण वाद की सुनवायी के लिये न्यूनतम क्षेत्राधिकार का न्यायालय सक्षम हैं। वादीगण ने जानबूझकर प्रतिवादीगण के अपील के एक अधिकार को समाप्त करने के लिये घोषणात्मक सहायता हेतु बढ़ा-चढ़ाकर मूल्यांकन किया है जो कि अनुचित है। अतः आवेदनपत्र स्वीकार कर वादीगण को निर्देश दिया जाये कि वे अभिवचनों में आवश्यक संशोधन कर न्यूनतम क्षेत्राधिकार के न्यायालय में वाद प्रस्तुत करें। वादीगण ने अपने प्रतिउत्तर में प्रतिवादी क्र. 5 एवं 6 के द्वारा ली गई दोनों आपत्तियों को अस्वीकार करते हुये व्यक्त किया है कि वाद के मूल्यांकन के संबंध में वाद मूल्याकंन अधिनियम की धारा-8 के प्रावधान इस प्रकरण में आकर्षित नहीं होते। वादग्रस्त भूमि पर वादीगण का कब्जा है, उन्होंने घोषणात्मक आज्ञप्ति के लिये संपत्ति के बाजार मूल्य के अनुसार दावे का मूल्यांकन कर नियत न्यायशुल्क अदा किया है। साथ ही निषेधाज्ञा की सहायता हेतु उचित मूल्यांाकन कर मूलानुसार न्यायशुल्क अदा किया है जो सर्वथा विधिक प्रावधानों के अनुरूप है। आवेदनपत्र दुर्भावनापूर्वक प्रकरण को लंबा करने के आशय से प्रस्तुत किया गया है इस कारण निरस्त किया जाये। आवेदन पर विचार कर प्रकरण का अवलोकनकिया। यह सुस्थापित विधि है कि न्यायशुल्क से संबंधित आक्षेपित प्रश्न का अवधारण केवल वादपत्र में वर्णित अभिवचनोंके आधार पर होना चाहिये।
