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HIGH COURT HINDI TYPING PRACTICE SHUBHAM BAXER CHHINDWARA (M.P.) 7987415987
created Sep 9th 2021, 15:00 by shubham baxer
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सिविल केस क्या होता है । सिविल कोर्ट की प्रक्रिया – नमस्कार दोस्तों! ज्यादातर कोर्ट केस के बारे में कोई बात सुनने के बाद हमारे दिमाग में चोरी डकैती, हत्या या फिर बलात्कार ऐसे के बारे में विचार आते है। लेकिन कोर्ट सिर्फ अपराधिक मामलों पर ही विचार नही करती। इसके अलावा कोर्ट में सिविल जिसे हिन्दी में व्यवहार कहा जाता है से संबंधित मामले भी आते है। तो आज हम ऐसे ही मुकद्मे यानी केस के बारे में समझेगे की सिविल और अपराधिक मामलो मे क्यार अंतर होता है और सिविल मामले किन परिस्थितियो में कोर्ट मे दायर किये जा सकते है और सिविल केस की कोर्ट मे क्या प्रोसेस होती है। अपराधिक मामले में वे मामले होते है जिसमे किसी व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा कार्य किया गया है जिसे विधि द्वारा दण्डनीय बनाया गया है। यानी जिनके लिए किसी प्रकार की सजा का प्रावधान है जैसे चोरी, हत्या, डकैती की कोशिश और भी कई ऐसे अपराध जिनमें सजा का प्रावधान है। आपराधिक मामलो में शिकायत दर्ज करने वाले का उद्देश्य हमेशा अपराधी को सजा दिलाना होता है। लेकिन सिविल मामलों मे ऐसा नही है सिविल मामले ऐसे अधिकारो के संबंध मे दायर होते है जिसमे किसी व्यक्ति द्वारा आपके किसी हक या किसी अधिकार सम्पात्ति आदि को किसी प्रकार से प्रभावित किया जाता है तब ऐसे मे सिविल मुकदमो का सहारा लिया जाता है तो उसे रोकने के लिए बाद और अगर किसी ने कब्जा कर लिया है। तो अपना कब्जा वापस पाने के लिए बाद बटवारे के संबंध मे बाद बिजनेस पार्टनशिप से संबंधित बाद आदि ऐसे मुकदमे जिनमे कहीं कोई सम्पत्ति से संबंध है। या किसी रकम से इस तरह के मुकदमे सिविल मुकदमे होते है या किसी अधिकार के संबंध मे किये गये मुकदमे सिविल प्रकृति के होते है जैसे तीन तलाक पर आया निर्णय एक सिविल प्रकृति के मुकद्मे से संबंधित है। सिविल कोर्ट मे केस किस तरह फाइल होता है सिविल कोर्ट मे केस फाईल करने के लिए एक प्रोसेस का पालन करना होता है विधि द्वारा एक प्रक्रिया बनाई गई है और उस प्रक्रिया के आधार पर ही सिविल केस चलते है। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि सिविल मुकदमों से संबंधित प्रक्रिया के बारे मे सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 मे प्रावधान किये गये है जिसे अंग्रेजी मे सिविल प्रोसिजर कोर्ड 1908 कहते है। कोर्ट केस के लिए वकील करना क्यो आवश्यक है वैसे तो कोर्ट में किसी भी तरह के केस को लड़ने या कहे तो उस केस मे अपना पक्ष रखने के लिए एक ऐडवोकेट की जरूरत होती है क्योकि एक अधिवक्ता मुकदमे से संबंधित पूर्ण प्रक्रिया को जानता है। इसी लिए क्योकि एक आम नागरिक जिसे विधि की विशेष जानकारी नही होती अपना पक्ष आसानी से कोर्ट के सामने नहीं रख सकता इसी लिए कोर्ट मे अधिवक्ता या वकील को नियुक्त किया जाता है ताकी वह कोर्ट मे सारी प्रक्रियाओं को ध्यान मे रखकर अपने पक्षकार का पक्ष रखें। लेकिन ऐसा नही है कि आम आदमी या कोई ऐसा व्यक्ति जो अधिवक्ता नही है। उसे ऐसे प्रोसेस को नही जानना चाहिए क्योकि ज्ञान कभी भी व्यर्थ नही होता जानकारी जितनी हो कम होती है। वादी और प्रतिवादी क्याा होता है- सिविल मुकदमे मे जिस व्याक्ति द्वारा कोर्ट मे केस दायर यानि फाइल किया जाता है वह वादी पक्ष यानी प्लेन्टिफ कहलाता है और जिस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाता है वह प्रतिवादी यानी डिफैन्डेन्ट् कहलाता है। दावा या वादपत्र किसे कहते है- अब यहा जब किसी व्य क्ति द्वारा कोर्ट मे केस फाइल किया जाता है तो ऐसे मे एक लिखित दावा तैयार किया जाना चाहिए जिसमे न्यायालय का नाम जिन व्यक्तियों द्वारा मुकदमा दायर किया जा रहा है। उन सभी का नाम व पूरा पता इसी के साथ जिन व्यक्तियो के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है यानी प्रतिवादी उन सभी का नाम व पूरा पता होना चाहिए। सिविल कोर्ट मे एक साथ कितने व्यक्ति केस फाइल कर सकते है- सिविल प्रकृति के किसी भी मुकदमे मे वादी एंव प्रतिवादियो कि संख्या के संबंध मे कोई रोक नही है एक साथ कितने भी वादी मुकदमा दायर कर सकते है। और एक साथ एक ही मुकदमे मे कितने भी प्रतिवादी बनाये जा सकते है किन्तु प्रत्येक वादी व प्रतिवादी का उस मुकदमे मे हित होना आवश्यक है। तो ऐसे वादी द्वारा अपने दावे मे वादी व प्रतिवादी के नाम व पते और इसी के साथ वादी को अपने अधिकार की हानि से संबंधित सभी तथ्यो को न्यायालय के समक्ष लिखित रूप मे देनी होती है। कोर्ट जब ऐसे दावे को प्राप्त कर लेता है तो प्रतिवादी यानी जिनके खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है उन व्यक्तियो को समन भेजती है कि वह दावे के संबंध मे अपना पक्ष आकर न्यायालय मे रखे। समन क्या है- समन कोर्ट द्वारा दिया गया एक लिखित आदेश होता है जाे समन प्राप्त करने वाले व्याक्ति यानी जिस व्यक्ति खिलाफ ऐसा समन जारी किया गया है। को यह सूचना देता है,कि आपके विरूद्ध कोर्ट मे एक मुकदमा दर्ज कराया गया है और इस मुकदमे के संबंध मे आप अगली नियत दिनांक पर आकर अपना पक्ष रखे। समन कोर्ट द्वारा जब भी जारी किया जाता है तो समन पर मुकदमे की संख्या मुकदमे के पक्षकार के नाम दिनांक व समय जिस दिनांक को प्रतिवादी को कोर्ट में हाजिर होना है कोर्ट की मोहर तथा मुकदमे का प्रकार ये सारी बाते समन पर लिखित होती है। यहाँ अगर इस प्रकार का समन प्रतिवादी प्राप्त कर लेता है तो अगली तारीख जो समन मे दी गई है पर प्रतिवादी अपने वकील के द्वारा कोर्ट मे अपना पक्ष रखता है। प्रतिवादी को कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए वादी के दावे का लिखित मे जबाव देना होता है जिसे लिखित कथन कहते है इस लिखित कथन के माध्यम से प्रतिवादी वादी के दावे मे दी गई सभी बातो का जबाव देता है। इशूज क्या है- कोर्ट जब प्रतिवादी के द्वारा प्रस्तुत ऐसे लिखित कथन को प्राप्त कर लेता है तब वह वारिकी से जॉच कर दोनो पक्षो के बीच विवाद को लिखित रूप मे तय कर लेता है। आसान भाषा मे अगर कहॅू तो कोर्ट वादी के वादपत्र और प्रतिवादी के लिखित कथन को देखने के बाद मेन विवाद यानि असली झगडे़ के मुद्दे को अलग से नोट कर लेता है। जिसे कोर्ट की भाषा मे इशूज कहते है असल मे कोर्ट यह देखता है कि आखिर तय क्याे होना है कोर्ट को किन किन विशेष बातो पर विचार करना है। ऐसे बिन्दु बनाने के बाद कोर्ट ऐसे बिन्दु बनाते समय कुछ विधिक यानी कानूनी बिन्दु भी बनाती है जैसे कि क्या इस न्यायालय को इस प्रकार का केस सुनने का अधिकार है या नही, क्या वादी ने जिस सम्पत्ति के बारे मे केस किया है उसका मूल्यांकन ठीक किया है या नहीं। वाद का मूल्यांकन क्या होता है। यहॉ मूल्यांकन से मतलब उस सम्पत्ति की कीमत से है वादी को अपने वाद मे जिस सम्पत्ति के संबंध मे केस किया है उसकी कीमत लिखनी होती है। और इसी के साथ कोर्ट यह भी बिन्दु् बनाती है कि अगर मूल्यांकन ठीक किया गया है तो क्या वादी के द्वारा आवश्यक कोर्ट फीस कोर्ट मे दाखिल कर दी गई है। कोर्ट फीस क्या होती है- यहा एक बात वता दू सिविल प्रकृति के मुकदमो मे कोर्ट आप जिस भी सम्पति के बारे मे केस लड़ना चाहते है उस सम्पत्ति की कीमत के आधार पर कोर्ट फीस लेती है जो आपको केस फाइल करते समय कोर्ट मे देनी होती है। इन सभी बिन्दुओ पर विचार करने के बाद यदि कोर्ट फीस पूर्ण रूप से दे दी गई है तो कोर्ट मुकदमे को गवाही की ओर ले जाती है। कोर्ट मे गवाही कैसे होती है- सिविल मुकदमो मे गवाही प्रस्तुत करने से पूर्व कोर्ट मे गवाहो की एक सूची दाखिल की जाती है जिसमे सभी गवाहो के नाम व पतो का विवरण देना होता है। यहॉ कोर्ट गवाही प्रस्तुत करने का अवसर पहले वादी पक्ष को देता है। जिसमे वादी एक एक करके अपने सभी गवाहो को कोर्ट मे वुलाकर उनसे गवाही प्रस्तुत कराता है। वादी द्वारा प्रस्तुत किये गये किसी भी गवाह से प्रतिवादीगण को हाजिर करने का अवसर प्रदान किया जाता है। हाजिर के अवसर से मतलब है कि प्रतिवादी के अधिवक्ता को यह अवसर प्रदान किया जाता है कि वह वादी के ऐसे गवाह से जो कोर्ट मे उपस्थित है सवाल पूछ सकता है और वह वादी के गवाह से सच या झूठ को साबित किये जाने के लिए गवाह से मुकदमे से संबंधित या जिस सम्पत्ति के संबंध मे केस दायर किया गया है उस से संबंधित प्रश्न पूछ सकता है। इस तरह हर बार वादी द्वारा अपना गवाह प्रस्तु्त करने के बाद प्रतिवादी के वकील को हाजिर का अवसर दिया जाता है। यहा जब वादी द्वारा अपने सभी गवाहो को प्रस्तुत कर दिया जाता है तब कोर्ट प्रतिवादी यानी जिसके खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था को अपने गवाह प्रस्तुत करने का मौका देती है। इन सभी प्रक्रियाओ के पूर्ण हो जाने के बाद जब कोर्ट दानो पक्षो के अधिवक्ता यानी वकीलो की वहस को सुनता है और वादी व प्रतिवादी दोनो पक्ष की वहस सुनने के बाद और पूरे मामले की पूर्ण रूप से जॉच करने के बाद कोर्ट अपना फैसला सुनाती है। तो ये था सिविल मुकदमे का पूरा प्रोसिसर लेकिन यह सिविल कोर्ट का प्रोसेस है इस प्रकार के निर्णय हो जाने के वाद जिस पक्ष के खिलाफ ऐसा आदेश किया जाता है वह अपील मे भी जाकर उस आदेश को चैलेंज कर सकता है। धन्यवाद!
बेवपेज सोर्स - ज्ञानीलॉ.इन.
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