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created Oct 11th 2021, 03:46 by PiyushJain1241983


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वादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क किया गया है कि चूंकि प्रतिवादी संख्या-1 ने यह आधार लिया है कि इकरारनामा ऋण की सुरक्षा के लिए निष्पादित किया गया था, अत: वह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के प्रावधानों का लाभ पाने का अधिकारी नहीं है। यह भी तर्क किया गया है कि इकरारनामे के अनुसार वादी ने विक्रय मूल्यक की अधिकांश राश रू. 15 लाख में से 13 लाख रूपये अदा की है अत: प्रतिवादी का यह तर्क कि वादी अनुबंध के निष्पादन हेतु अपने भाग के पालन के लिए तत्पअर उत्सुरक नहीं रहा भी स्वीकार योग्या नहीं है। यह भी तर्क किया गया है कि इकरारनामे में अंतर्विष्टप लेख में अवशेष राशि के भुगतान के लिए समय सीमा का कोई प्रावधान नहीं किया गया है अत: समय संविदा का सार नहीं है। यह भी तर्क किया गया है कि पश्चावतवर्तीय क्रेता यह आधार नहीं ले सकता है कि वादी अपनी तत्पारता और उत्सु कता प्रमाणित करने में असफल रहा है। यह भी तर्क किया गया है कि प्रतिवादी संख्या 2 से 4 ने वादी के साथ पूर्व में किये गये इकरारनामे के संबंध में कोई जांच पड़ताल नहीं की है। दूसरी तरफ प्र.सा.1 के अधिवक्तां द्वारा इकरारनामा प्रदर्श पी-1 की ओर न्याीयालय का ध्यापन आकर्षित कराया गया है कि इकरारनामे के अनुसार विक्रय पत्र के निष्पा1दन के लिये यह आवश्ययक था कि वह ग्राम पंचायत से अनुमति प्राप्ता करें। परन्तु् वादी ग्राम पंचायत से अनुमति प्राप्तध करने में असफल रहा है और उसके लिए उसने लगभग 3 साल तक कोई कदम नहीं उठाया। समाचार पत्र में प्रकाशित सूचना और टेलीग्राम से भेजी गई सूचना वादी द्वारा प्रतिवादी नंबर-1 को विक्रय पत्र के निष्पा दन के बाद भेजी गई है। वादी संविदा में अपने भाग के पालन हेतु तत्पठर उत्सु नहीं रहा है।  

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