Text Practice Mode
सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Nov 25th 2021, 04:34 by lucky shrivatri
4
284 words
            16 completed
        
	
	5
	
	Rating visible after 3 or more votes	
	
		
		
			
				
					
				
					
					
						
                        					
				
			
			
				
			
			
	
		
		
		
		
		
	
	
		
		
		
		
		
	
            
            
            
            
			 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...
			
				
	
    00:00
				पूर्वग्रह का अर्थ है एक सक्रिय पूर्वाग्रह, जो कि किसी मामले में या किसी पक्ष के प्रति जानबूझकर या अनजाने में हो सकता है। इसलिए पूर्वाग्रह के विरूद्ध कानून उन कारकों पर प्रहार करता है, जो किसी जज को किसी खास फैसले पर पहुंचने में अनुचित रूप से प्रभावित कर सकते है। इस सिद्धांत की आवश्यकता यह है कि न्यायाधीश निश्चित रूप से निष्पक्ष होना चाहिए एवं किसी मुकदमें का फैसला उसे उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्षता से करना चाहिए।  
इसलिए कोई व्यक्ति, चाहे जिस कारण से भी हो उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर, यदि एक निष्पक्ष निर्णय नहीं ले सकता है तो उसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त कहा जाएगा। एक व्यक्ति उस मामले में निष्पक्ष निर्णय नहीं ले सकता, जिसमें उसका अपना हित हो, क्योंकि क्योंकि मानवीय मनोविज्ञान कहता है कि बहुत ही विरले लोग अपने हितों के विरूद्ध निर्णय ले पाते है। यह अयोग्यता का नियम सिर्फ इसलिए नहीं लगाया जाता कि पक्षपातपूर्ण निर्णय न हो, बल्कि इसलिए भी लगाया जाता है, लोगों का निष्पक्ष प्रशासनिक न्याय व्यवस्था में विश्वास बना रहे, क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वयं के ही मामले में जज नहीं हो सकता। साथ-साथ न्याय न सिर्फ होना चाहिए, बल्कि स्पष्ट रूप से एवं बिना किसी संदेह के होते हुए दिखना भी चाहिए। प्राकृतिक न्याय का न्यूनतम आवश्यकता यह है कि प्राधिकार (न्याय-व्यवस्था) में वे निष्पक्ष लोग होने चाहिए, जो न्यायोचित ढंग से एवं पूर्वाग्रह रहित होकर काम कर सकें।
पूर्वाग्रह के वशीभूत होकर दिया गया निर्णय व्यर्थ है तथा इस तरह की सुनवाई न्यायोचित नहीं कहीं जा सकती। इसलिए पूर्वाग्रह का निष्कर्ष, सिर्फ परोक्ष संकेत, अनुमान या संदेह के आधार पर होना चाहिए। पूर्वाग्रह कई प्रकार के होते हैं एवं फैसलों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते है।
			
			
	        इसलिए कोई व्यक्ति, चाहे जिस कारण से भी हो उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर, यदि एक निष्पक्ष निर्णय नहीं ले सकता है तो उसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त कहा जाएगा। एक व्यक्ति उस मामले में निष्पक्ष निर्णय नहीं ले सकता, जिसमें उसका अपना हित हो, क्योंकि क्योंकि मानवीय मनोविज्ञान कहता है कि बहुत ही विरले लोग अपने हितों के विरूद्ध निर्णय ले पाते है। यह अयोग्यता का नियम सिर्फ इसलिए नहीं लगाया जाता कि पक्षपातपूर्ण निर्णय न हो, बल्कि इसलिए भी लगाया जाता है, लोगों का निष्पक्ष प्रशासनिक न्याय व्यवस्था में विश्वास बना रहे, क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वयं के ही मामले में जज नहीं हो सकता। साथ-साथ न्याय न सिर्फ होना चाहिए, बल्कि स्पष्ट रूप से एवं बिना किसी संदेह के होते हुए दिखना भी चाहिए। प्राकृतिक न्याय का न्यूनतम आवश्यकता यह है कि प्राधिकार (न्याय-व्यवस्था) में वे निष्पक्ष लोग होने चाहिए, जो न्यायोचित ढंग से एवं पूर्वाग्रह रहित होकर काम कर सकें।
पूर्वाग्रह के वशीभूत होकर दिया गया निर्णय व्यर्थ है तथा इस तरह की सुनवाई न्यायोचित नहीं कहीं जा सकती। इसलिए पूर्वाग्रह का निष्कर्ष, सिर्फ परोक्ष संकेत, अनुमान या संदेह के आधार पर होना चाहिए। पूर्वाग्रह कई प्रकार के होते हैं एवं फैसलों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते है।
 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...