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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 14th 2022, 11:38 by rajni shrivatri
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				मकर संक्रांति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है। यह त्योहार, सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहार की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है।  
मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन कर स्नान किया जाता है। इसके अलावा तिल और गुड़ के लड्डूू एंव अन्य व्यंजन भी बनाए जाते है। इस समय सुहागन महिलाएं सुहाग की सामग्री का आदान प्रदान भी करती है। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके पति की आयु लंबी होती है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंधप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडुु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है। अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते है, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड का भी मकर संक्रांति पर बेहद महत्व है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ होती है। सूर्य के उत्तरायण प्रवेश के साथ स्वागत-पर्व के रूप में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। वर्षभर में बाहर राशियों मेष, वृषभ, मकर, कुंभ, धनु इत्यादि में सूर्य के बाहर संक्रमण होते हैं और जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है।
 
 
 
 
 
 
 
   
			
			
	        मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन कर स्नान किया जाता है। इसके अलावा तिल और गुड़ के लड्डूू एंव अन्य व्यंजन भी बनाए जाते है। इस समय सुहागन महिलाएं सुहाग की सामग्री का आदान प्रदान भी करती है। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके पति की आयु लंबी होती है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंधप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडुु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है। अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते है, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड का भी मकर संक्रांति पर बेहद महत्व है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ होती है। सूर्य के उत्तरायण प्रवेश के साथ स्वागत-पर्व के रूप में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। वर्षभर में बाहर राशियों मेष, वृषभ, मकर, कुंभ, धनु इत्यादि में सूर्य के बाहर संक्रमण होते हैं और जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है।
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