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ACADEMY FOR STENOGRAPHY, MORENA,DIR- BHADORIYA SIR TYPING MPHC JUNIOR JUDICIAL ASSISTANT
created Mar 16th 2022, 10:01 by ThakurAnilSinghBhado
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न्यायमूर्ति भगवती यहां पर यह वर्णन करना भी अनुचित नहीं होगा कि ऐसी अनेक परिस्थितियां हो सकती है जो लोक हित मुकदमें को ग्रहण करने को न्यायोचित ठहराती है किंतु हम इन सभी परिस्थितियों की कोई व्यापक सूची तैयार नहीं कर सकते हैं। न्यायमूर्ति भगवती ने एस. के. गुप्ता बनाम भारत संघ में जिसे जजों की नियुक्तियों और स्थानान्तरण के नाम से जाना जाता है और जिसकी सुनवाई सात विद्वान न्यायाधीशों के न्यायपीठ द्वारा की गई थी, स्पष्ट स्प से लोक हित मुकदमें की परिभाषा दी है और निम्नलिखित निबन्धनों में अपने मतों को अतिसावधानीपूर्वक विस्तार में व्यक्त किया है। इस अब इसे सुस्थिर नियम के रूप में माना जा सकता है कि जहां कोई विधिक दोष अथवा विधिक क्षति किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी निश्चित वर्ग को किसी सांविधानिक अथवा विधिक अधिकार के उल्लंघन के कारण कारित की गई हो अथवा किसी सांविधानिक या विधिक उपबंध के उल्लंघन में अथवा विधि के प्राधिकार के बिना उस पर भार अधिरोपित किया गया हो अथवा ऐसे किसी विधिक दोष अथवा विधिक क्षति या अवैध भार की आशंका हो और ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का निश्चित समूह निर्धनता, असहायता अथवा निर्योग्यता या सामाजिक अथवा आर्थिक रूप से पिछड़ी स्थिति के कारण अनुतोष की मांग करने के लिए उसके समक्ष समावेदन करने से असमर्थ है वहां जनता को कोई सदस्य अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में समुचित निदेश, आदेश अथवा रिट के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है और ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों ने निश्चित वर्ग के किसी मूलभूत अधिकार के भंग की दशा में इस न्यायालय में अनुच्छेद 32 के अधीन ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के निश्चित वर्ग को कारित विधिक हेतु दोष अथवा क्षति के लिए न्यायिक उपचार की मांग कर सकता है। यह न्यायालय जन-हिताय रूप से कार्य करने वाले ऐसे व्यक्ति द्वारा संबोधित पत्र मात्र पर तुरन्त कार्यवाही करेगा। यह सही है कि इस न्यायालय द्वारा ऐसे नियम बनाए गए हैं जिनमें कि अनुच्छेद 32 के अधीन अनुतोष के लिए इस न्यायालय में समावेदन करने हेतु प्रक्रिया संबंधी विनिधान विद्यमान है।
