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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 4th 2022, 02:56 by lucky shrivatri
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भारत के संविधान के लागू होने की तिथि 26 जनवरी 1950 अर्थात प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्वसंध्या को वर्तमान इलाहाबाद उच्च न्यायालय को उत्तर प्रदेश के संपूर्ण क्षेत्र में अधिकारिता प्राप्त हो गयी। उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के द्वारा उत्तरांचल राज्य तथा उत्तरांचल उच्च न्यायालय 8 और 9 नवंबर 2000 के बीच की मध्यरात्रि से अस्तित्व में आये तथा इस अधिनियम की धारा 35 के अनुसार उत्तरांचल राज्य के क्षेत्र में आने वाले 13 जिलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अधिकारिता समाप्त हो गयी। संविधान के अंतर्गत प्रत्येक राज्य की अपनी न्यायपालिका है जो केन्द्र और राज्य दोनों की विधियों को प्रशासित करती है। इसे सोपनिक संरचना में व्यवस्थित किया गया है। राज्य की न्यायपालिका के शीर्ष पर उच्च न्यायालय है जो राज्य में दीवानी और फौजदारी मामलों के लिए अपील और पुनरीक्षण का सर्वोच्च न्यायालय है। इसे अधीनस्थ न्यायपालिका के ऊपर पशासनिक और न्यायिक दोनों ही प्रकार की विस्तृत शक्तियां प्राप्त है। भारत के वर्तमान संविधान में उच्च न्यायालयों के विषय में बहुत से प्रावधान हैं, उनकी संपूर्ण व्याख्या यहां नहीं की जा रही है क्योंकि यह विषय मुख्य रूप से संवैधानिक विधि के क्षेत्र में आता है। फिर भी उच्च न्यायालय का एक सामान्य परिचय यहॉं दिया जा रहा है। संविधान ने सभी विद्यमान उच्च न्यायालयों को पुनर्गठित किया। इसने प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय का प्रावधान किया। संसद को दो या अधिक राज्यों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक उच्च न्यायालय की स्थापना की शक्ति दी गयी है। उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है तथा यह अपनी अवमानना के लिए दंड दे सकता है। यह किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के प्रशासनिक अधीक्षण में नही है, हालांकि इसके निर्णयों की अपीलें उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत संख्या में अन्य न्यायाधीश होते है। इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की स्वीकृत 95 है। मुख्य न्यायाधीश न्यायालय के प्रशासनिक कार्य का प्रभारी होता है तथा वह अपने साथी न्यायाधीशों में न्यायिक कार्य का वितरण करता है। उसके अपने न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में उसकी सलाह भी ली जाती है। किन्तु न्यायालय में न्यायिक कार्य के सम्पादन में उसका स्तर किसी अन्य न्यायाधीश से ऊँचा नहीं होता है तथा विशेष अपील में किन्ही अन्य दो न्यायाधीशों द्वारा उसके निर्णय को उलटा जा सकता है। साथ ही यदि वह तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ में विद्यमान हो तो उसके शेष दोनों साथियों द्वारा बहुमत से उसके निर्णय के विरूद्ध व्यवस्था दी जा सकती है। उसका किसी अन्य न्यायाधीश पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होता है तथा उसकी स्थिति को सामानों में प्रथम कहा जा सकता है।
