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मंगल टाईपिंग (INDIANA)
created Saturday May 14, 03:24 by gg
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उसने अपना परिचय बहुत ही आम लोगों जैसा ही दिया- अत्यन्त साधारण घर, इधर-उधर बिखरा हुआ सामान, बिछौना भी साफ नहीं। किसी-किसी दिन अपने कमरे में वह गुलदस्ते में फूल सजाकर रखता है किन्तु बदकिस्मती से उस दिन कमरे में फूल की एक पंखुड़ी भी नहीं थी। सभी कहते हैं की सभाओं में विनय जैसा जबानी ही सुन्दर भाषण दे देता है, लगता है एक दिन बहुत बड़ा वक्ता होगा, किन्तु उस दिन उसने ऐसी एक भी बात नहीं कही जिससे उसकी बुद्धि का थोड़ा भी सबूत मिले। उसे बार-बार केवल यही सूझता कि यदि कहीं ऐसा हो सकता कि ‘जब वह बड़ी गाड़ी से टकराने जा रही थी, उस समय बिजली की तेजी से सड़क के बीच पहुंचकर मैं अनायास उन मुंहजोर घोड़ो की जोड़ी की लगाम पकड़कर उन्हें रोक देता।’ अपनी उस मनघढन्त बहादुरी की छवि जब उसके मन में साकार हो उठी, तब एक बार फिर आईने के सामने जाकर अपना चेरहा निहारे बिना उससे नहीं रहा गया।
तभी उसने देखा, सात-आठ बरस का एक लड़का सड़क पर खड़ा उसके घर का नम्बर देख रहा है। विनय ने ऊपर से ही पुकारा,“यही है, ठीक यहीं घर है।” लड़का उसी के घर का नम्बर ढूंढ रहा है, इस बारे में उसे जरा भी शक नहीं था। सीढ़ियों पर चप्पल फटकारता हुआ विनय तेजी से नीचे उतर गया। बड़े आवेश में लड़के को कमरे में ले जाकर उसके चेहरे की ओर देखने लगा। वह बोला,“दीदी ने मुझे भेजा हैं।” कहते हुए उसने विनयभूषण के हाथ मे एक कागज दिया।
विनय ने कागज लेकर पहले लिफाफा बाहर से देखा। लड़कियों के हाथ कि लिखावट में उसका नाम लिखा हुआ था। भीतर चिट्ठी-पत्री कुछ नहीं थी, केवल कुछ रुपये थे। लड़का जाने को हुआ तो विनय ने किसी तरह उसे छोड़ा नहीं । उसका कन्धा पकड़कर उसे दुसरी मंजिल में ले गया।
लड़के का रंग उसकी बहन से अधिक सांवला था, किन्तु चेहरे की बनवट कुछ मिलती जुलती थी। उसे देखकर विनय के मन में गहरा प्यार और आनन्द जाग उठा।
लड़का बहुत तेज था। कमरे में घुसते ही दीवार पर लगी हुई तस्वीर देखर बोला,“यह किसका चित्र है?”
सायरी
कोई खुशीयों की चाह में रोया,
कोई दुःख की पनाह में रोया,
अजीब सिलसिला है ये जिन्दगी का
कोई भरोसे के लिए रोया, कोई भरोसा कर के रोया।
उपरोक्त गद्यांश में कोई भी असुविधा हुई हो तो मुझे कृपया क्षमा कीजिएगा।
आपका धन्यवाद
तभी उसने देखा, सात-आठ बरस का एक लड़का सड़क पर खड़ा उसके घर का नम्बर देख रहा है। विनय ने ऊपर से ही पुकारा,“यही है, ठीक यहीं घर है।” लड़का उसी के घर का नम्बर ढूंढ रहा है, इस बारे में उसे जरा भी शक नहीं था। सीढ़ियों पर चप्पल फटकारता हुआ विनय तेजी से नीचे उतर गया। बड़े आवेश में लड़के को कमरे में ले जाकर उसके चेहरे की ओर देखने लगा। वह बोला,“दीदी ने मुझे भेजा हैं।” कहते हुए उसने विनयभूषण के हाथ मे एक कागज दिया।
विनय ने कागज लेकर पहले लिफाफा बाहर से देखा। लड़कियों के हाथ कि लिखावट में उसका नाम लिखा हुआ था। भीतर चिट्ठी-पत्री कुछ नहीं थी, केवल कुछ रुपये थे। लड़का जाने को हुआ तो विनय ने किसी तरह उसे छोड़ा नहीं । उसका कन्धा पकड़कर उसे दुसरी मंजिल में ले गया।
लड़के का रंग उसकी बहन से अधिक सांवला था, किन्तु चेहरे की बनवट कुछ मिलती जुलती थी। उसे देखकर विनय के मन में गहरा प्यार और आनन्द जाग उठा।
लड़का बहुत तेज था। कमरे में घुसते ही दीवार पर लगी हुई तस्वीर देखर बोला,“यह किसका चित्र है?”
सायरी
कोई खुशीयों की चाह में रोया,
कोई दुःख की पनाह में रोया,
अजीब सिलसिला है ये जिन्दगी का
कोई भरोसे के लिए रोया, कोई भरोसा कर के रोया।
उपरोक्त गद्यांश में कोई भी असुविधा हुई हो तो मुझे कृपया क्षमा कीजिएगा।
आपका धन्यवाद
