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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 21st 2022, 10:35 by Shankar D.
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वर्तमान मामले में, प्रत्यर्शी संख्या 1, प्रत्यर्थी संख्या 6 की पत्नी और इसमें के अपीलार्थी की पुत्रवधु है जबकि प्रत्यर्थी संख्या 2 से 5, प्रत्यर्थी संख्या 1 और 6 के विवाह से उत्पन्न बच्चे है। प्रत्यर्थी संख्या 1 (पत्नी/पुत्रवधु) ने अपीलार्थी और प्रत्यर्थी संख्या 6 के विरुद्ध स्वर्ण आभूषणों या वैकल्पिक रूप में इसके मूल्य को उद्गृहीत करने के लिए जो उसका प्रत्यर्थी संख्या 6 के साथ विवाह में उसके माता-पिता द्वारा अपीलार्थी और प्रत्यर्थी संख्या 6 को दिया जाना अभिकथित था, कुटुम्ब न्यायालय, श्रीनाथपुरम के समक्ष 2002 की मूल याचिका संख्या 108 के अधीन और कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 26 के अधीन भरणपोषण मंजूर करने के लिए भी वाद फाइल किया। इस वाद का कुटुम्ब न्यायालय के समक्ष प्रत्यर्थी संख्या 6 के साथ ही प्रतिवादियों में से एक अपीलार्थी द्वारा विरोध किया गया। तथापि, कुटुम्ब न्यायाधीश ने तारीख 10 नवंबर, 2000 को अपीलार्थी को एकपक्षीय माना क्योंकि वह उस तारीख को वाद में उपस्थित होने में असफल रहा था। उसके बाद, कुटुम्ब न्यायालय ने उसी दिन अपीलार्थी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री पारित कर दी। उसके बाद, अपीलार्थी ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 9, नियम 13 के अधीन एक आवेदन फाइल किया और आवेदन फाइल करने में विलंब होने की माफी के लिए आवेदन के साथ ही एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने की प्रार्थना की। कुटुम्ब न्यायाधीश ने तारीख 24 फरवरी, 2021 के आदेश द्वारा आवेदनों को खारिज कर दिया और विलंब की माफी देने से इनकार कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप, संहिता के आदेश 9 के नियम 13 के अधीन फाइल आवेदन को भी इसके गुणागुणों पर चर्चा किए बिना खारिज कर दिया था। अपीलार्थी, तारीख 15 नवंबर, 2000 के आदेश से व्यथित महसूस किया और उच्च न्यायालय के समक्ष प्रकीर्ण अपील संख्या 356/2000 फाइल किया। चूंकि, अपील 554 दिनों के विलंब से फाइल की गई थी, इसलिए अपीलार्थी ने अपील फाइल करने में विलंब होने की माफी देने की प्रार्थना करते हुए, परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के अधीन एक आवेदन भी फाइल किया था। उच्च न्यायालय ने आक्षेपित आदेश द्वारा विलंब की माफी के लिए आवेदन के साथ ही अपील को भी खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय की राय में, अपीलार्थी, अपील फाइल करने में विलंब होने की माफी के लिए कोई पर्याप्त कारण देने में असफल रहा और अतएव, अपील फाइल करने में 554 दिनों के विलंब होने की माफी की ईप्सा करते हुए फाइल आवेदन कायम रखे जाने योग्य नहीं है। परिणामस्वरूप, अपील, परिसीमा अवधि द्वारा वर्जित होने के कारण खारिज कर दिया था जिसके कारण प्रत्यर्थी संख्या 1 ससुर ने इस न्यायालय के समक्ष विशेष इजाजत के माध्यम से इन अपीलों को फाइल किया। न्यायालय की सुविचारित राय में, मामले के संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों तथा अपीलार्थी द्वारा दर्शित कारणों जिन्हें दस्तावेजों द्वारा सम्यक् रूप से साबित कर दिया गया है, को ध्यान में रखते हुए, हम यह अभिनिर्धारित करते हैं कि उच्च न्यायालय के समक्ष अपील फाइल करने में विलंब माफी के लिए अपीलार्थी द्वारा दर्शित कारण, परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 के अर्थान्तर्गत पर्याप्त कारण था।
