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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 23rd 2022, 02:50 by lucky shrivatri
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संक्षेप में मामले के तथ्य ये है कि इत्तिलाकर्ता की अवयस्क पुत्री निकटवर्ती बगीचे में ईधन जलाने की लकड़ी एकत्रित करने गई थी तभी अपीलार्थी ने उस पर हमला किया। अत: अपीलार्थी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के अधीन आरोपित किया गया। मुजफ्फरपुर के विद्वान अपर सेशन न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक न्यायालय संख्या 4 द्वारा दोषसिद्ध निर्णय द्वारा तारीख 1 अप्रैल 2000 के दोषसिद्धि आदेश द्वारा आहत के साथ बलात्संग करने का दोषी पाया और कठोर आजीवन कारावास भोगने के द्वारा दंडादिष्ट किया गया। उस पर 10,000/- रुपए का जुर्माना भी अधिरोपित किया गया जिसके संदाय में चूक होने पर एक माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भी भोगना था। विद्वान विचारण न्यायालय द्वारा पारित उक्त निर्णय और आदेश द्वारा व्यथित होकर अपीलार्थी द्वारा वर्तमान अपील फाइल की गई। हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि साक्षियों के साक्ष्य बलात्संग के आरोप पर संगत हैं। सभी साक्षी एक ही मोहल्ले के निवासी है जो घटनास्थल के निकट स्थित है और उन सभी को उनकी प्रतिपरीक्षा के दौरान सच्चा पाया गया। उनकी प्रतिपरीक्षा में ऐसी कुछ भी दर्शित नहीं किया गया है कि जिसके आधार पर उनके परिसाक्ष्य पर अविश्वास किया जा सके। यद्यपि प्रतिरक्षा पक्ष ने दुश्मनी के आधार पर असत्य रूप से अंतर्वलित किए जाने का प्रकथन किया है किन्तु वह दुश्मनी के तथ्य को साबित कर पाने में असफल रहे। बलात्संग के आरोप को चिकित्सीय अधिकारी और अन्वेषण अधिकारी के साक्ष्य से पूर्ण समर्थन प्राप्त होता है। सतर्कतापूर्वक परीक्षण करने पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि साक्षियों के कथन में कोई तात्विक फेरफार नहीं है। असंगतताओं, जिनकी ओर हमारा ध्यान काउंसेल द्वारा दिलाया गया, अत्यधिक मामूली है और परिणाम पर कोई अधिक प्रभाव डालने वाली नही है चूंकि न्यायालय से अपेक्षा की जाती है कि वह अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य की सच्चाई पर विचार करे। इत्तिलाकर्ता, उसकी पत्नी और पड़ोसियों से यह प्रत्याशा नहीं की जा सकती कि वे न्यायालय के समक्ष आकर कोमल आयु की अवयस्क, अविवाहित लड़की के विरुद्ध अपमानित करने वाले कथन करें चाहे उनके मध्य किसी कारणवश वैमनस्यता ही क्यों न हो। संपूर्ण साक्ष्य और परिस्थितियां अपीलार्थी के विरुद्ध बलात्संग के आरोप को पूर्णत: साबित करती है और हमको विचारण न्यायालय द्वारा अभिलिखित दोषसिद्धि को मान्य ठहराने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। अंतत: अपीलार्थी के विद्वान काउंसेल ने दंड की मात्रा को विवादित किया। उनके अनुसार अपीलार्थी की आयु को सम्मिलित करते हुए, जो 19 वर्ष का था, उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि, विभिन्न तथ्यों पर विचारोपरांत आजीवन कारावास का दंडादेश और चूक खंड के साथ 10,000/- रुपए का जुर्माना अत्यधिक अधिक है। हमने भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(च) के उपबंधों का परीक्षण किया है जो बलात्संग के दंड के बारे में चर्चा करती है। उपधारा 2(च) स्पष्ट करती है कि जो भी किसी स्त्री से, जो बारह वर्ष से कम आयु की है, बलात्संग करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो आजीवन हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित होगा।
