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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Jul 21st 2022, 11:46 by Jyotishrivatri


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अपीलार्थीगण/अभियुक्‍तगण ने यह नियमित दाण्डिक अपील अंतर्गत धारा 374 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1973 मुख्‍य न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट भोपाल द्वारा दांडिक प्रकरण 126/2001 मध्‍यप्रदेश राज्‍य विरुद्ध चेतन, आदि में पारित निर्णय दिनांक को प्रश्‍नगत करते हुए प्रस्‍तुत की है। प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा विचारण न्‍यायालय ने अभियुक्‍तगण को धारा 232 सहपठित धारा 22 भारतीय दंड संहिता 1890 के अपराध में दोषसिद्ध पाते हुए 6 माह के सश्रम कारावास एवं पांच-पांच सौ रुपए के अर्थदण्‍ड की सजा से दण्डित किया है एवं अर्थदण्‍ड अदा करने की दशा में 11 दिवस के अतिरिक्‍त सश्रम कारावास की सजा से दंडित किया है। अभियोजन की कहानी का सारांश इस प्रकार है कि फरियादी सुमेर निवासी ग्राम सुकतरा ने दिनांक 10/10/2000 को पुलिस थाना कोतवाली राजपुर में इस आशय की रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह के.ई.डी.एल. राजपुर में मीटर रीडर के पद पर कार्यरत है। प्रात: 8 बजे के लगभग वह कोटड़ी क्षेत्र में महेश के घर पर बिजली रीडिंग के लिए गया था तभी उसके सिर में मारी चोट के कारण वह नीचे गिर गया तथा उसे लात घूसों से मारा जिससे उसने पीठ, बाएं हाथ एवं पैर में चोट आई। उक्‍त आशय की रिपोर्ट थाना कोतवाली रायपुर में प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 लेख करायी। विवेचना के दौरान आहत का मेडिकल परीक्षण कराया गया, साक्षीगण के कथन लेखबद्ध किए गए, घटनास्‍थल का नजरी नक्‍शा प्रदर्श पी-2 तैयार किया गया तथा संपूर्ण विवेचना उपरांत अभियोग-पत्र संबंधित न्‍यायालय में पेश किया गया। विचारण न्‍यायालय द्वारा अभियोग-पत्र के आधार पर अभियुक्‍तगण के विरुद्ध धारा 294, 323/23, 506 (भाग-2) भारतीय दण्‍ड संहिता 1850 के आरोप की रचना किए जाने एवं अभियुक्‍तगण को पढ़कर सुनाए समझाए जाने पर अभियुक्‍तगण ने अपना अपराध स्‍वीकार कर, विचारण हेतु निवेदन किया। धारा 311 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता 1973 की परीक्षा में अभियुक्‍तगण का बचाव यह है कि फरियादी पक्ष रंजिश के कारण उनके विरुद्ध मिथ्‍या कथन करते हैं। अभियोजन की ओर से अपने पक्ष समर्थन में फरियादी सुमेर (अ.सा.1) अमित (अ.सा.2) और पवन (अ.सा.3) के कथन कराए गए हैं। अभियुक्‍तगण ने अपने बचाव में साक्षी के कथन कराए हैं, जिस पर प्रश्‍नगत निर्णय पारित कर अभियुक्‍तगण को दोषसिद्ध मान्‍य कर, पूर्व में विवेचित दण्‍डादेश से दण्डित किया गया। प्रश्‍नगत निर्णय के विरुद्ध अपीलार्थी/अभियुक्‍तगण की ओर से यह दांडिक अपील इस आधार पर प्रस्‍तुत की है कि प्रश्‍नगत निर्णय विधि विरुद्ध है, विचारण न्‍यायालय द्वारा साक्षियों की समुचित साक्ष्‍य विवेचना नहीं की गई है, साक्षियों के कथन में आये गंभीर विरोधाभास एवं विसंगति पर समुचित रूप से विचार नहीं किया गया।

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