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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट छिन्दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ (CPCT, & TALLY)
created Mar 18th, 08:07 by Ashu Soni
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न्यायालय फिस अधिनियम की धारा 6 के अनुसार अधिनियम की अनुसूचियों में उल्लेखित प्रतयेक दस्तावेज जिनको न्यायालय फीस से प्रभार्य बनाया गया है पर तब तक आगे की कार्यवाही नहीं की जायेगी जब तक की फीस अदा नहीं की जाती। इसका तात्पर्य है कि न्यायालय फीस का भुगतान प्राथमिक शर्त है। यद्दपी परिस्थिति अनुसार सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 149 के अन्तर्गत फीस के भुगतान हेतु समय दिया जा सकता है किन्तु मामले आगे की कार्यवाही तभी करना चाहिये जब वांछित फीस भुगतान कर दी गयी हो। प्रकरण के किसी स्तर पर यदि न्यायालय को यह पता है कि फीस कम भुगतान की गई है तब वह न्यायालय फीस अधिनियम की धारा28 के अन्तर्गत किसी भी समय ऐसी कम भुगतान की गई फीस ली जा सकती है। यदि निर्णय के समय यह पाया जाता है कि फीस कम दी गई है तब डिक्री में यह शर्त अधिरोपण की जा सकती है कि डिक्री तब प्रभावी प्रभावों होगी जब देय फीस का पूर्ण भुगतान किया जाए। ऐसी फीस निष्पादन न्यायालय में जमा की जा सकती है। दूसरा शेष फीस भू-राजस्व के बकाया की तरह वसूल करने के निर्देष के साथ डिक्री की प्रति जिले कलेक्टर को भेज सकता है। न्यायालय में यह अपेक्षित है की प्रकरण के निराकरण के उपरांत अभिलेख को अभिलेखागार में जमा कराये जाने से पूर्व इस बात की संतुष्टि कर ले कि कोई फीस शेष तो नहीं है। अन्यथा धारा 28ए के अनुसार प्रकरण का अभिलेख अभिलेखागार से पुन: वसूली हेतु न्यायालय को लौटाया जा सकता है। अधिनियम की प्रथम अनुसूची के अनुसार अधिकतम न्यायालय फीस एक लाख पचास हजार रूपया है। इस तरह के वादों में जहां तक अनुतोषों में से कोई अनुतोष चाहा गया है वहां उस अनुतोष के लिये पृथक से न्यूनतम एक सौ रूपये के अधिनियम रहते हुये न्यायालय देय होगी।
