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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट JJA 2023 - Dheeraj singh tomar
created Mar 23rd 2023, 17:22 by Dheeraj singh tomar
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इस तथ्य के अतिरिक्त, सभी कानूनी दस्तावेज अर्थात् विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम 1974 के अधीन विहित प्रारुप सीमा-शुल्क अधिनियम द्वारा विहित पोत परिवहन पत्र खनिज और धातु व्यापार निगम के नाम से उसे निर्यातकर्ता के रूप में दर्शित करते हुए किये गये थे। हमने जी.आर. -1 प्रारुप का परिशीलन किया इसके कॉलम एक में निर्यातकर्ता का नाम हैं। इस कॉलम के सामने भारतीय खनिज और धातु व्यापार निगम लिमिटेड लिखा हुआ है इस प्रारुप में निर्यातकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा है जिसमें यह कहा गया है किवह वह माल का विक्रेता प्रेषक है और इसमें आगे यह वचनबंध भी है कि वे उक्त प्रारुप में दिये गये बैंक को उस विदेशी मुद्रा का परिदान करेंगे जो इसमें दिये गये माल के निर्यात के परिणामस्वरूप प्राप्त होगी। इस पर खनिज और धातु व्यापार निगम के हस्ताक्षर है। प्रतिदेय पत्र खनिज और धातु व्यापार निगम के नाम में खोले गये थे। यह सब वस्तु भी विनियमन की प्रणाली अपेक्षा के अनुसार किया गया। फैरो-अलॉय ने उपधारण से इस प्रणाली से लाभ उठाया क्योंकि इससे उसे लाभ हुआ वास्तव में यह प्रकट है कि वह उक्त माल अन्यथा विक्रय करने में समर्थ नहीं था। तथापि, भले ही पसंद से या अनुकल्प बिना उसे खनिज और धातु व्यापार निगम के माध्यम से अपना माल भेजना पसंद किया। क्या अब फैरो-अलॉय कह सकता है कि इस सब पर बाह्य दिखावे के नाम पर ध्यान न दिया जाये और उसे धारा 280(य)(ग) के प्रयोजनो के लिए वास्तविक निर्यातकर्ता माना जाये, वह दोनो हालातों में लाभ प्राप्त करना चाहता है। वह हर हाल में जीतना चाहता है, हारना नहीं चाहताा। उपर्युक्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुये फैरो-अलॉय के पक्ष में प्रकट कारण यह है पक्षकारों के मध्य संविधान में खनिज और धातु व्यापार निगम को संदेह दो प्रतिशत ''कमीशन'' का उल्लेख हैं।
