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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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पांच माह पहले की बात हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल ने मध्‍यप्रदेश सरकार को बड़ी राहत दी थी। 3000 हजार करोड़ का जुर्माना माफ कर दिया था। यह जुर्माना नदी-तालाबों में बिना साफ किया सीवेज छोड़ने पर लगा था। माफी के साथ एक शर्त भी जुड़ी थी। छह माह में ट्रीटमेंट के लिए स्‍थाई समाधान ढूंढ़ता था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल ने तब एक नसीहत भी दी थी। कहा था- इंदौर ने देश के सबसे सफलतम वेस्‍ट मैनेजमेंट मॉडल कैसे विकसित किया, इसे पूरे देश को भी दिखाएं। लेकिन लगता हैं एनजीटी के आदेशों की किसी को परवाह ही नहीं हैं। तभी तो शर्त की अवधि बीतने के पहले ही पर्यावरणीय उल्‍लंघन के कई और मामले सामने आए हैं। भोपाल नगर निगम ने तो आदमपुर खंती में कचरे के निस्‍तारण में घोर लापरवाही बरती। जनता की सेहत से खिलवाड़ करते हुए खतरनाक कचरे को जलने के लिए छोड़ दिया। कचरा निस्‍तारण पर निगम अफसरों ने झूठ पर झूठ बोला। इसलिए एनजीटी के निर्देश पर मप्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने नगर निगम पर डेढ़ करोड़ रुपए का पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में जुर्माना ठोका हैं। साथ ही एनजीटी ने स्‍थानीय नागरिकों के नि:शुल्‍क स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण का भी आदेश दिया है। एनजीटी ने पर्यावरण की रखा के लिए पेड़ों के चारों और इंटरलाकिंग टाइल्‍स लगाने का निर्देश दिया हैं। लेकिन, इस आदेश की भी कहां पालना हो रही हैं? भोपाल ही नहीं प्रदेश के हर शहर में तालाबों का कैचमेंट एरिया अतिक्रमण का शिकार हैं। नदियों में सीवर का पानी गिर रहा हैं। सरकारी और वन विडंबना हैं। प्रशासन कोई कार्रवाई ही नहीं करता। एनजीटी हरकत में आता हैं, तो उसके निर्णयों पर भी कहीं कोई अमल नहीं होता। जानकर आश्‍चर्य होगा। सीवेज और ठोस कचरे के कुप्रबंधन आदेशों की अवहेलना पर ही अब तक 7 राज्‍यों पर कुल 28180 करोड़ रुपए का जुर्माना और अन्‍य अलग-अलग मामलों में करीब 2000 करोड़ रुपए का जुर्माना लग चुका हैं। लेकिन स्थिति जस की तस हैं। जनता की सेहत के लिए ही सही सरकार की समझना होगा कि शहरों में ठाेस कचरे को संभालना एक  शाश्‍वत चुनौती हैं। इससे निपटने के लिए लगातार प्रयास की जरूरत हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि नगर निकाय उत्तरदायी भी हो। यही समस्‍या का समाधान भी हैं।         

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