Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Sep 11th 2023, 03:59 by lucky shrivatri
2
363 words
12 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
स्वास्थ्य बीमा करवाने वाले सभी लोगों को अस्पतालों में 100 फीसदी कैशलेस इलाज उपलब्ध करवाने के लिए बीमा नियामक संस्था इरडा की ओर से की जा रही मशक्कत आज देश की बड़ी जरूरज है। सौ फीसदी कैशलेश नहीं होने के कारण बीमा होने के बावजूद कभी दवाइयों, कभी कुछ चिकित्सा सामग्री तो कभी किसी अन्य मद में खर्च का काफी बोझ बीमाकर्ता के सिर पड़ता है। चूंकि इलाज निरंतर महंगा होजा जा रहा है, तो बीमाकर्ताओं को बीमे के बावजूद खुद की जेब से उतना ही ज्यादा निकालना पड़ रहा है। कई बार तो यह राशि इतनी ज्यादा हो जाती है कि बीमे का औचित्य ही नहीं रहता। ऐसे में बीमाकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस करता है।
ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनके चलते देश में मात्र 37 प्रतिशत आबादी ही स्वास्थ्य बीमे के दायरे में है। समस्या यहीं तक सीमित नहीं है। इरडा का खुद का अध्ययन और निष्कर्ष है कि कैशलेस के अधिकांश मामलों में भी दस से बीस प्रतिशत भुगतान की कटौती किसी न किसी स्तर पर कर ही दी जाती है। इसका भार भी अंतत: बीमाकर्ता के सिर पर ही आता है। सौ फीसदी कैशलेस इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित होने से ये सारी समस्याएं दूर ही जाएगी। मरीज आश्वस्त होगा कि उसे अस्पताल में भर्ती होने के बाद एक भी रूपया जेब से नहीं निकालना होगा। बड़ी संख्या में बीमाकर्ताओं को इसका लाभ मिलेगा। इरडा का यह कदम बीमाकर्ताओं की संख्या बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा लोगो को स्वास्थ्य बीमे के दायरे में आने के लिए प्रेरक का काम भी करेगा। इस कदम की शत-प्रतिशत सफलता सुनिश्चित करने के लिए इरडा को इस पहलू पर भी काम करना होगा कि अस्पतालों में फर्जी बिल तैयार न हों और बीमा कंपनियों को अनावश्यक इसका भार वहन न करना पड़े। बीमे की किसी भी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए बीमा कंपनियों को भी मजबूत बनाए रखना जरूरी है। फर्जी बिलों को रोकने का तंत्र इन कंपनियों के पास है, पर यह भी सच है कि व्यापक स्तर पर फर्जी बिलों के उदाहरण मौजूद है। देश में केवल 2 फीसदी बुजुर्गो के पास ही स्वास्थ्य बीमा होने की स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। इसमें सुधार होना ही चाहिए।
ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनके चलते देश में मात्र 37 प्रतिशत आबादी ही स्वास्थ्य बीमे के दायरे में है। समस्या यहीं तक सीमित नहीं है। इरडा का खुद का अध्ययन और निष्कर्ष है कि कैशलेस के अधिकांश मामलों में भी दस से बीस प्रतिशत भुगतान की कटौती किसी न किसी स्तर पर कर ही दी जाती है। इसका भार भी अंतत: बीमाकर्ता के सिर पर ही आता है। सौ फीसदी कैशलेस इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित होने से ये सारी समस्याएं दूर ही जाएगी। मरीज आश्वस्त होगा कि उसे अस्पताल में भर्ती होने के बाद एक भी रूपया जेब से नहीं निकालना होगा। बड़ी संख्या में बीमाकर्ताओं को इसका लाभ मिलेगा। इरडा का यह कदम बीमाकर्ताओं की संख्या बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा लोगो को स्वास्थ्य बीमे के दायरे में आने के लिए प्रेरक का काम भी करेगा। इस कदम की शत-प्रतिशत सफलता सुनिश्चित करने के लिए इरडा को इस पहलू पर भी काम करना होगा कि अस्पतालों में फर्जी बिल तैयार न हों और बीमा कंपनियों को अनावश्यक इसका भार वहन न करना पड़े। बीमे की किसी भी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए बीमा कंपनियों को भी मजबूत बनाए रखना जरूरी है। फर्जी बिलों को रोकने का तंत्र इन कंपनियों के पास है, पर यह भी सच है कि व्यापक स्तर पर फर्जी बिलों के उदाहरण मौजूद है। देश में केवल 2 फीसदी बुजुर्गो के पास ही स्वास्थ्य बीमा होने की स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। इसमें सुधार होना ही चाहिए।
